पिता संस्कारदाता ही नहीं, जीवन-निर्माता भी है!

पिता संस्कारदाता ही नहीं, जीवन-निर्माता भी है!

ऋषिकेश-पिता ही भगवान होता है लेकिन जब तक एक बच्चे को इसका अहसास होता है बहुत देर हो चुकी होती है।यही शास्वत सत्य भी है।बेहराल इन सबके बीच डे संस्कृति के मोजूदादौर में रविवार को दुनियाभर के साथ तीर्थ नगरी ऋषिकेश में भी फादर्स डे धूमधाम से मनाया गया। जहां बच्चों ने अपने पिता को उपहार देकर सम्मानित किया। वहीं मिठाई बांट खुशी का इजहार किया गया। बच्चों ने अपने माता-पिता के साथ मंदिरों में जाकर पूजा अर्चना की। बच्चों ने अपने पिता का आशीर्वाद लिया गया। केक काटा व मिठाई बांटकर खुशी का भी इजहार किया।

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इस भागमभाग भरी जिंदगी में रिश्ते कहीं खोते नजर आ रहे हैं। तभी तो हर रिश्तो के लिए एक डे, एक दिन निश्चित किया जा रहा है।रविवार का सुपर संडे पिताओं को सर्मपित रहा।शहर के प्रतिष्ठित व्यवासायी मानव जौहर की मानें तो पिता संस्कारदाता ही नहीं, जीवन-निर्माता भी है। पिता दिवस की शुरुआत बीसवीं सदी के प्रारंभ में पिताधर्म तथा पुरुषों द्वारा परवरिश का सम्मान करने के लिये मातृ-दिवस के पूरक उत्सव के रूप में हुई। यह हमारे पूर्वजों की स्मृति और उनके सम्मान में भी मनाया जाता है। फार्दस डे के मौके पर शहर के युवा प्रतिष्ठित व्यवसायी निशांत मलिक ने बताया उनके पिता के महान व्यक्तित्व के बूते ही आज वह इस मुकाम तक पहुंचे हैं।उन्होंने कहा कि पिता एक ऐसा शब्द जिसके बिना किसी के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। एक ऐसा पवित्र रिश्ता जिसकी तुलना किसी और रिश्ते से नहीं हो सकती।

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