उत्तराखंड में धधकते वनों को लेकर बुद्धिजीवी वर्ग चिंतित

उत्तराखंड में धधकते वनों को लेकर बुद्धिजीवी वर्ग चिंतित

ऋषिकेश-हिमालयी वनों में आग कोई असामान्य घटना नहीं है लेकिन जंगलों में हो रही विनाशकारी घटनाओं ने कई स्तर पर चिंता पैदा की है। जंगलों में लगने वाली अधिकांश आग मानवजनित है, लेकिन उस पर नियंत्रण का ढांचा चरमरा रहा है।



उत्तराखंड की भौगोलिक एवं पर्यावरण की स्थिति पर पैनी निगाह रखने वाला बुद्विजीवी वर्ग इसको लेकर बेहद चिंतित है। शहर के शिक्षाविद डॉ सुनील दत्त थपलियाल का कहना है कि हिमालयी क्षेत्र में भी आग कोई नई या सामान्य घटना नहीं है लेकिन अब आग की घटनाओं का ग्राफ बदल रहा है।इससे मानवीय जीवन पर भी खतरा मंडराने लगा है।पर्यावरण पर इसका बेहद गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।मैत्री संस्था की अध्यक्ष कुसुम जोशी के मुताबिक पहाड़ी जीवन जंगलों पर निर्भर है।रसोई के लिये सूखी लकड़ी, पशुओ के लिये घास, बिछावन हमें जंगलो से ही मिलती है। पर्यटन उद्योग भी अप्रत्यक्ष रूप से वनों पर ही निर्भर करता है।पर्यटकों को हमारे खूबसूरत वन ही यहां आने के लिये आकर्षित करते हैं।पर्यटन के लिये अन्य आवश्यक सुविधाएं तो जुटाई जा सकती हैं लेकिन अगर वन ही नहीं रहेंगे तो सुविधाओं का पर्यटक क्या करेंगे।उन्होंने कहा कि सामूहिक प्रयासों से हम जंगलो को आग से बचाने मे सफल हों सकते हैं।विभिन्न संगठनों से जुड़े समाजसेवी डॉ राजे नेगी कहते हैं कि उत्तराखंड के जंगलों में लगातार आग धधक रही है और इसके पीछे जलवायु परिवर्तन एक वजह है।जंगलों मेें आग लगने की घटनाओं का विकराल स्वरूप और बार-बार होना चिंताजनक है।

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