कोरोना के साइड इफेक्ट्स वर्षो झेलने होंगे-रीना नारायण
कोरोना के साइड इफेक्ट्स वर्षो झेलने होंगे-रीना नारायण
ऋषिकेश-देश में कोरोना के नये वेरिएंट ओमीक्रान का कहर भले ही कम हो गया हो।लेकिन आर्थिक हालात नही सुधरे हैं।रोजगार पर जबरदस्त कुठाराघात हुआ है।व्यापार पर भी गंभीर चोट लगी है।अपने भविष्य को लेकर हर कोई चितिंत है।
समाजसेविका रीना नारायण की मानें तो कोरोना के साइड इफेक्ट्स तो अभी वर्षों तक झेलने होंगे।कोरोना की मार से जूझ रही पूरी दुनिया अगले छह महीने, एक साल या 10 साल में आज के मुक़ाबले कहां खड़ी होगी?यह वक्त बतायेगा।उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस ने इकॉनमी पर तगड़ी चोट की है।भविष्य को लेकर कई अनुमान हैं। लेकिन, ये सभी इस बात पर निर्भर करते हैं कि सरकारें और समाज कोरोना वायरस को कैसे संभालते हैं और इस महामारी का अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा।उम्मीद है कि हम इस संकट के दौर से एक ज़्यादा बेहतर, ज़्यादा मानवीय अर्थव्यवस्था बनकर उभरेंगे. लेकिन, अनुमान यह भी है कि हम कहीं अधिक बुरे हालात में भी जा सकते हैं।उन्होंने बतायाकोरोना वायरस महामारी के रेस्पॉन्स दूसरे सामाजिक और पर्यावरणीय संकटों को लाने वाले जरियों का विस्तार ही है. यह एक तरह की वैल्यू के ऊपर दूसरे को प्राथमिकता देने से जुड़ा हुआ है। कोविड-19 से निपटने में ग्लोबल रेस्पॉन्स को तय करने में इसी डायनेमिक की बड़ी भूमिका भी रही है।ऐसे में जैसे-जैसे वायरस को लेकर रेस्पॉन्स का विकास हो रहा है, उसे देखते हुए यह सोचना ज़रूरी है कि हमारा आर्थिक भविष्य क्या शक्ल लेगा? उन्होंने कहा कि छोटे बदलावों सूरत नही बदलने वाली।क्लाइमेट चेंज की तरह से ही कोरोना वायरस हमारी आर्थिक संरचना की ही एक आंशिक समस्या है।हालांकि, दोनों पर्यावरण या प्राकृतिक समस्याएं प्रतीत होती हैं, लेकिन ये सामाजिक रूप पर आधारित हैं।क्लाइमेट चेंज की असलियत समझने के लिए हमें उन सामाजिक वजहों को ढूंढना होगा जिनके चलते हम ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन लगातार कर रहे हैं।इसी तरह से कोविड-19 भी है। भले ही सीधे तौर पर इसकी वजह एक वायरस है। लेकिन, इसके असर को रोकने के लिए हमें मानव व्यवहार और इसके वृहद रूप में आर्थिक संदर्भों को समझना होगा।