इगास का पर्व उल्लास का पर्व-स्वामी चिदानन्द

इगास का पर्व उल्लास का पर्व-स्वामी चिदानन्द

ऋषिकेश- परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द ने आज प्रदेशवासियों को बूढ़ी दिवाली की शुभकामनायें देते हुये कहा कि रोशनी का पावन पर्व ‘दिवाली’ भगवान श्री राम के 14 साल के वनवास से घर लौटने की खुशी में मनाया जाता है, लेकिन बूढ़ी दिवाली विशेष रूप से उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के अन्य हिस्सों में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि अयोध्या में भगवान राम के लौटने की खबर उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश तक पहुंचने में लगभग एक महीने का समय लगा इसलिये इन राज्यों के लोग इसे बूढ़ी दिवाली के रूप में मनाते है।


परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि रोशनी का यह पर्व बूढ़ी दिवाली का अपना धार्मिक महत्व है साथ ही यह उत्सव और उल्लास का भी पर्व है। प्रतीकात्मक रूप से, बूढ़ी दिवाली एकजुटता, अपने परिवार के साथ समय बिताने और अपने प्रियजनों से भेंट करने का त्योहार भी है। यह पर्व सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसने प्राचीन काल से अपनी विशिष्ट पहचान और पहाड़ी व्यंजनों के स्वाद को जीवंत बनाये रखा है। कहा कि, पर्व और त्यौहार अर्थ व्यवस्था और संस्कारों के दृष्टिकोण से किसी भी समाज की रीढ़ हैं। इगास पर्व के माध्यम से वर्तमान पीढ़ी भारतीय संस्कृति को समझे, जाने और जिये ताकि भारतीय संस्कृति हमेशा जीवंत बनी रहे।

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