छठ पर्व सामाजिक समरसता का प्रतीक -स्वामी चिदानन्द

छठ पर्व सामाजिक समरसता का प्रतीक -स्वामी चिदानन्द

ऋषिकेश- परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने देशवासियों को छठ पूजा की शुभकामनायें देते हुये कहा कि छठ पूजा का चार दिवसीय अलौकिक अनुष्ठान हम सभी को प्रकृति से जोड़ता है तथा प्रकृति के संरक्षण-संवर्धन का संदेश देता है। यह पर्व सामाजिक समरसता का प्रतीक है। कहा जाता है कि जिसका ‘उदय’ होता है, उसका ‘अस्त’ होना तय है! लेकिन ‘छठ पर्व’ सिखाता है, जो ‘अस्त’ होता है, उसका ‘उदय’ निश्चित है। यह एकमात्र ऐसा त्योहार है जिसमें न केवल उगते सूर्य की पूजा की जाती है बल्कि सूर्यास्त यानी उषा एवं प्रत्यूषा की भी पूजा की जाती है।
छठ एक प्राचीन हिंदू वैदिक त्योहार है जो ऐतिहासिक रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में श्रद्धा पूर्वक मनाया जाता है। छठ पूजा एक लोक त्योहार है जो चार दिनों तक चलता है। यह कार्तिक शुक्ल की चतुर्थी से शुरू हो कर सप्तमी को समाप्त होता है।



स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि छठ का पावन पर्व सूर्य देवता और षष्ठी देवी को समर्पित चार दिवसीय अनुष्ठानपरक आयाम है जो नहाय-खाय, खरना से शुरू होता है तथा छठ पूजा और सूर्य देव को अघ्र्य देकर अनुष्ठान का समापन किया जाता है। इस पर्व के माध्यम से श्रद्धालु भगवान सूर्य की पहली किरण – उषा और शाम की आखिरी किरण – प्रत्युषा के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं। ब्रह्मांड में भगवान सूर्य ही ऊर्जा के प्रथम स्रोत है उनके कारण ही पृथ्वी पर जीवन संभव हो पाता है। छठ का अनुष्ठान हमें जीवन में नियम और निष्ठा तथा श्रद्धा और समर्पण का संदेश देता है।

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