श्रद्वापूर्वक व्रत रखने वालों की छठ मैया पूरी करती है मनोकामना- रीना नारायण

श्रद्वापूर्वक व्रत रखने वालों की छठ मैया पूरी करती है मनोकामना- रीना नारायण
ऋषिकेश- यूं तो छठ पूजा पूर्वांचल की संस्कृति से जुड़ा त्योहार है पर आस्था और उत्साह को सीमाओं में कहां बाधा जा सकता है। यही वजह है कि पूर्वांचल से होते होते यह संस्कृति देश के विभिन्न राज्यों में में बह निकली हैं। सोमवार से अनवरत 72 घंटे के उपवास का सिलसिला नहाए खाए रिवायत के साथ शुरू हो जाएगा।पूर्वांचल वासियों के घर एक बार फिर से दीपावली सी रोशनी बिखेरने को तैयार हैं।महापर्व के पारण वाले दिन घरों में रोशनी की जाती है और आतिशबाजी आदि जला कर खुशियां मनाईं जातीं हैं। त्योहार का उल्लास देखते ही बनता है।
समाजसेविका रीना नारायण ने बताया कि बेहद आस्था का पर्व माने जाने वाले छठ मैया के उपवास की प्रक्रिया काफी कठिन हैं।सोमवार से शुरू होने वाले नहाए खाए उपवास के बाद खरना और अस्तागामी सूर्य को अर्ध्य देने के बाद सूर्योदय के समय पहली किरन को अर्घ देने की प्रक्रिया काफी जटिल मानी जाती है। हालांकि उनका मानना है कि पर्व में इतनी शक्ति और भाव होता है कि छठ मैया खुद ही उपवास रखने वाले शख्स को शक्ति देती हैं।उन्होंने बताया नहाय खाय के साथ उपवास शुरू होगा। इसमें लौकी चना दाल को ग्रहण किया जाएगा और पूरे दिन उपवास रखा जाएगा। सुबह गंगा जल से स्नान करने के उपरांत ही इस उपवास की शुरुआत मानी जाती है।नहाय खाय के बाद अगले दिन खरना की प्रक्रिया रहेगी। खरना में नए गेहूं के आटे से बनी पूरी और गाय के दूध व गुड के जरिए बनी खीर शाम के वक्त ग्रहण किया जाता है। इसके बाद अस्तागामी सूर्य देव को अर्ध्य दिया जाएगा साथ ही यह संकल्प लिया जाएगा कि भोर में पहली किरन के साथ ही उपवास का पारण तब किया जाएगा कि जब प्रसाद अर्पित कर सूर्य देव को नमन कर लेंगे। उन्होंने बताया विविध चरणों से होकर यह छठ पर्व तीन दिनों तक चलता है। इस दौरान लगातार 72 घंटे तक उपवास रख कर महिलाएं पुरूष व अन्य मनौतियां मांगते हैं और छठ मैया उनकी मनोकामना को पूरा करतीं हैं।