श्राद्धपक्ष में किए जाने वाले श्राद्धकर्म के साथ दान पुण्य दूर करते हैं पितृदोष-पंडित राजेंद्र नौटियाल

श्राद्धपक्ष में किए जाने वाले श्राद्धकर्म के साथ दान पुण्य दूर करते हैं पितृदोष-पंडित राजेंद्र नौटियाल

ऋषिकेश-हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का खास महत्व माना जाता है। इसकी शुरुआत भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से होती है और समाप्ति आश्विन अमावस्या के दिन।इस वर्ष पितृ पक्ष 20 सितंबर से लेकर 6 अक्टूबर तक रहेगा। इन 16 दिनों की अवधि में पितरों का श्राद्ध कर्म किया जाना है। मान्यता है इस दौरान हमारे पूर्वज धरती पर अपने परिवार के लोगों से अपनी मुक्ति और भोजन लेने के लिए मिलने आते हैं। इसलिए इस दौरान पिंडदान, तर्पण, हवन और अन्न दान का विशेष महत्व माना जाता है।


नगर के विख्यात ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र नौटियाल ने बताया कि हिंदू धर्म में दान को धर्म पालन व जरूरी हिस्सा माना गया है। खासतौर पर पितरों की प्रसन्नता को श्राद्धपक्ष में किए जाने वाले श्राद्धकर्म के साथ दान न केवल पितृदोष को दूर करते हैं, बल्कि परिवार की प्रगति में बाधक रुकावटों को भी दूर करते हैं। हिंदू धर्म में भादों माह व आश्विन माह का पहला पखवाड़ा पितरों की पूजा के लिए नियत हैं। इस अवधि में पितरों की पूरी आस्था, भावना व श्रद्धा के साथ तन-मन-धन श्राद्ध करने से अपार सुख की प्राप्ति होती है। ज्योतिषाचार्य नौटियाल की माने तो श्राद्ध के श्राद्धकर्म के साथ करने वाले दान न केवल पितृ दोष खत्म करते हैं, बल्कि हर परिवार की तरक्की व खुशहाली में आ रही रुकावटों को हमेशा को दूर कर देते हैं।

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