देवभूमि की धरोहर रहे कुएं विलुप्त होने के कगार पर!

देवभूमि की धरोहर रहे कुएं विलुप्त होने के कगार पर!

ऋषिकेश- तीर्थ नगरी ऋषिकेश की धरोहर रहे कुएं अब पूरी तरह से विलुप्त होने के कगार पर हैं।आलम यह है कि मोजूदा दौर की युवा पीढी तो इनके नाम से भी अंजान हैं।


ऋषि मुनियों की तप स्थली रहे ऋषिकेश में अस्सी के दशक तक नागरिकों को पेयजल सुविधा के साथ ही धार्मिक परंपराओं में भी इसकी भूमिका महत्वपूर्ण होती थी।शहर के विभिन्न क्षेत्रों में तो कुएं के नाम से अपनी पहचान हुआ करती थी। कभी यहां सैकड़ों कुएं होते थे। अधिकांश आबादी की पेयजल व्यवस्था कुओं से ही जुड़ी होती थी। क्योंकि इसका जल अमृत माना जाता था। वर्तमान में स्थिति यह है कि शहर में चंद कुएं ही शेष बचे हैं। समय की बहती धारा में अधिकांश का अस्तित्व समाप्त हो चुका है। जो शेष बचे हैं, उसका पानी भी पीने लायक नही है। विलुप्त होते कुएं को संरक्षित करने की पहल फिलहाल किसी जिम्मेदार द्वारा नही की जा रही है।विडंबना देखिए किसी जमाने में तमाम धार्मिक परम्पराएं कुएं से ही जुड़ी होती थीं। कभी यह शहर इन्हीं विरासतों के चलते अपनी अलग पहचान रखता था। इस वक्त बदलाव के माहौल और स्मार्ट सिटी की और बड़ते कदमों तले शहर अपना समृद्धशाली अतीत भूलता जा रहा है। एक-एक करके अधिकांश कुएं पट चुके हैं। अगर कहीं कुआं बचा है तो वहां सिर्फ धार्मिक आयोजन होते हैं। कुछ में पानी तो है, परंतु गंदगी के चलते वह दूषित है। अतिक्रमण का शिकार हुए कुएं के अस्तित्व को बचाने के लिए अभी तक कोई प्रयास नहीं हुआ न ही प्रशासन की ओर कोई अभियान ही चलाया गया। देवभूमि के बुजुर्ग नागरिकों की मानें तो जो गौरवशाली इतिहास यहां का है, उसको देखते हुए कुओं को संरक्षित करने के लिए पहल होनी चाहिए।

error: Content is protected !!
%d bloggers like this: