संगीनों के साये में गन्ने काटकर चलाया सर्च अभियान,मौके पर मिले गुलदार होने के प्रमाण

संगीनों के साये में गन्ने काटकर चलाया सर्च अभियान,मौके पर मिले गुलदार होने के प्रमाण

जगह जगह पड़े हैं मृत कुत्तों के अधखाये शरीर

ऋषिकेश-ग्रामीण क्षेत्र ऋषिकेश अंतर्गत ग्राम सभा खड़क माफ में विनोद विहार के समीप गुलजार फार्म में लगातार मिल रही गुलदार की आमद से खौफजदा ग्रामीणों ने वन क्षेत्राधिकारी ऋषिकेश से सुरक्षा की गुहार लगाई थी।
वन क्षेत्राधिकारी एम एस रावत ने संज्ञान लेते हुए न केवल वन सुरक्षा कर्मियों की टीम गठित कर क्षेत्र में रात्रि गश्त बढ़ाई बल्कि उच्चाधिकारियों को सूचित कर देहरादून से रेस्क्यू दल भेजने का आग्रह किया।साथ ही सशत्र सुरक्षा वनकर्मियों से गुलदार प्रभावित क्षेत्र में रात को कैंप करने के आदेश दिए।उधर प्रभारी वनाधिकारी राजीव धीमान ने सूचना का संज्ञान लेकर मौके पर रेस्क्यू टीम रवाना की। मौके पर पहुँची रेस्क्यू टीम और वनकर्मियों ने गन्ने के खेत में सरसराहट की आवाज सुनी तो गुलदार के नन्हे शावक गन्ने के खेत में घूमने की पुष्टि की।इसके बाद दोपहर में सर्च अभियान चलाने की कोशिश की तो ग्रामीणों की अत्यधिक मौजूदगी की और सुरक्षा की दृष्टि से दिन में सर्च अभियान को टालना पड़ा।इसके बाद देर शाम वन सुरक्षा कर्मियों की उपस्थिति में स्थानीय किसान अमरजीत सिंह के मजदूरों ने संगीनों के साये में गन्ने की फसल का कटान शुरू किया।ताकि रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया जा सके।



शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के प्रान्त पर्यावरण प्रमुख पर्यावरणविद विनोद जुगलान ने बताया कि वर्षों से लगातर वनों के असन्तुलित दोहन से वन्यजीवों के लिए जँगलों में प्राकृतिक सुवास कम पड़ने लगे हैं।केवल ऋषिकेश क्षेत्र की बात करें तो पिछले दो तीन वर्षों में आबादी क्षेत्रों के आसपास झाड़ियों और खेतों में वन्यजीवों ने अपने प्राकृतिक सुवास बना लिए हैं।इसका एक बड़ा कारण है आवसीय क्षेत्रों के समीप बन्द पड़े उद्योग इनके छिपने के लिए अनुकूलता प्रदान करने वाले हैं।दूसरी ओर माँस भक्षी गुलदार और बाघ,भेड़ियों के लिए आवारा कुत्ते और निराश्रित गौवंश उनकी आसानी से शिकार बन जाते हैं।जबकि जंगल में उन्हें शिकार करने के लिए खूब दौड़ना पड़ता है।क्षेत्र में बड़ी वन विभाग द्वारा सौर ऊर्जा बाड़ लगाने के बाद से जँगली हाथियों और नीलगाय की आमद तो रुकी है लेकिन गुलदार जैसे खतरनाक जीव खुलेआम घूम रहे हैं। आबादी क्षेत्र में आवारा पशुओं की भरपूर उपलब्धता के कारण आसानी से मिलने वाले भोजन की वजह से अभी तक किसी भी गुलदार के आदमखोर होने की खबर नहीं है।लेकिन अगर मादा गुलदार के शावकों को उसकी उपस्थिति में पकड़ा जाता है तो उसके आक्रामक होने की स्थिति स्वाभाविक है।ऐसे में यदि हम प्रकृति और वन्यजीवों का सम्मान नहीं करते हैं तो इसका परिणाम हमारी आने वाली पीढ़ी पर पड़ेगा।जिस तरह से पूरे प्रदेश में गुलदार के आबादी क्षेत्रों में आगे बढ़ने की खबरें लगातार मिल रहीं हैं,उससे एक बात साफ है कि हमें वन्यजीवों के बीच रहने की ही आदत डालनी पड़ सकती है।वन्यजीवों से बचाव को जरूरी है कि घरों के आसपास झाड़ियाँ बिल्कुल न उगने दें।पालतू पशुओं को निगरानी में रखें।घरों के आसपास मरे हुए मवेशी न फेंकें।पालतू पशुओं के मरने पर उन्हें अवश्य दफनाएं।बच्चों को शादी विवाह और अन्य आयोजनों पर अकेले कहीं न भेजें।रात को घर छानी गौशाला के आसपास प्रकाश व्यवस्था दुरुस्त करके रखें।घर आँगन में बाहर लाइट जला कर रखें।वन्यजीवों खासकर बाघिन और मादा गुलदार जिनके साथ शावक हों उनकी आमद पर शोर न मचाकर वन विभाग या निकटतम चौकी को सूचित करें।खड़क माफ में देर रात तक चले सर्च अभियान में मौके पर वनक्षेत्राधिकारी एम एस रावत,रेस्क्यू प्रभारी रवि जोशी,रविन्द्र बिष्ट,वनबीट अधिकारी राजेश बहुगुणा,वनकर्मी संजय सिंह रावत,राम चन्द्र सिंह रावत,वनकर्मी कमल राजपूत,मनोज कुमार,सागर ठाकुर,त्रिकांश शर्मा,पर्यावरणविद विनोद जुगलान,शान्ति प्रसाद थपलियाल,क्षेत्र पंचायत सदस्य श्रीकान्त रतूड़ी,सुबोध कण्डवाल,दिनेश कुलियाल मौजूद रहे।देरशाम तक रेस्क्यू किया गया।अंधेरा होने के कारण रेस्क्यू रोकना पड़ा कल सुबह जेसीबी के साथ फिर रेस्क्यू करने पर विचार किया जा रहा है।गन्ने के खेत के अन्दर से गुलदार द्वारा मारे गए कुत्तों के अवशेष पाए गए।

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