संस्कृतियों का संरक्षण ही समृद्ध मानवीय सभ्यता का प्रमुख अंग-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

संस्कृतियों का संरक्षण ही समृद्ध मानवीय सभ्यता का प्रमुख अंग-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश- भारत के महान संत, विचारक और आध्यात्मिक गुरू रामकृष्ण परमहंस की जयंती के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने उन्हें भावाजंलि अर्पित करते हुये कहा कि रामकृष्ण परमहंस की कृपा दृष्टि से ही पूरे विश्व को स्वामी विवेकानन्द के रूप में एक महान विचारक मिले जिन्होंने भारतीय संस्कृति, अध्यात्म, वेदांत और योग रूपी भारतीय दर्शन का परिचय पश्चिमी दुनिया को कराया।





​banner for public:Mayor

स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि श्री रामकृष्ण परमहंस ने सभी धर्मों की एकता और सभी के साथ मानवतापूर्ण व्यवहार का संदेश दिया। वर्तमान समय में विश्व में विभिन्न स्थानों पर बहु संस्कृतियों के कारण आपसी वैमनस्यता बढ़ रही हैं ऐसे में रामकृष्ण परमहंस की शिक्षायें और संदेेशों को अमल में लाना जरूरी है क्योंकि वैश्विक स्तर पर बढ़ती वैमनस्यता, मानवता के लिए भी घातक है।
स्वामी चिदानंद ने कहा कि भारत का सिद्धांत विविधता में एकता है और इसी सिद्धान्त के आधार पर हमारे ऋषियों ने राष्ट्र का निर्माण किया है तथा यही भारतीय संस्कृति का मूल भी है। हमारे पूर्वजों ने सांस्कृतिक एकीकरण के स्थान पर विविधता में एकता के सिद्धांत को स्वीकार किया है जिसमें सभी को हित समाहित है। हमारे ऋषियों ने सभी सांस्कृतियों को सुरक्षित रखा तथा सांस्कृतिक विविधता को संरक्षण दिया।
स्वामी चिदानंद ने कहा कि भारत की संस्कृति अपने आप में अतुलनीय है। अतः सभी को विशेष कर हमारे युवाओं को अपनी संस्कृति के साथ दूसरे की संस्कृति के मूल्यों को भी समझा होगा और आदर देना होगा तभी समाज में एकता और मानवता का संचार हो सकता है। भारतीय संस्कृति हमें सर्वधर्म सद्भाव, विविधता में एकता और वसुधैव कुटुंबकम जैसे मूल सिद्धांतों के साथ जीवन जीने का संदेश देती है।

error: Content is protected !!
%d bloggers like this: