दिल्ली का शानदार क्रिकेटर और प्रतिष्ठित व्यवसाई देवभूमि मैं बना नामचीन समाजसेवी!

दिल्ली का शानदार क्रिकेटर और प्रतिष्ठित व्यवसाई देवभूमि मैं बना नामचीन समाजसेवी!

ऋषिकेश- दिल्ली में अपनी ऑफ स्पिन गेंदबाजी से बड़े बड़े बल्लेबाजों की गिल्लियां बिखेर देने वाला एक सख्स अपनी रिटायरमेंट लाइफ में उत्तराखंड की देवभूमि में समाज सेवा के जरिए समाज के लिए मिसाल बना हुआ है। समाजसेवा के सााथ उनके द्वारा गरीब बच्चों के लिए शिक्षा की अलख जगाने की मुहिम में एक स्कूल खोल कर बच्चों को निशुल्क शिक्षा भी दी जा रही है।
हम बात कर रहे हैं ऋषिकेश के प्रमुख समाजसेवियों में से एक गुरविंदर सलूजा की जिनके जीवन का सिर्फ एक ही लक्ष्य है जरूरतमंद लोगों की मदद करना।





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अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त धार्मिक एवं पर्यटन नगरी ऋषिकेश में यूं तो अनेकों समाजसेवियों द्वारा अपने अनुकरणीय कार्यों से लोगों की मदद की जा रही है लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो कि सिर्फ समाज सेवा करने के लिए ही तीर्थ नगरी में बसे हैं ।गुरविंदर सलूजा का नाम भी उन लोगों में शुमार है जिनका आधे से ज्यादा जीवन अपने पैतृक शहर दिल्ली में गुजरा है। लेकिन उम्र के 70 वर्ष के पड़ाव के बावजूद समाज सेवा के जरिए वह एक मिसाल कायम किए हुए हैं। अपने युवा दिनों में शानदार खिलाड़ी रहे गुरविंदर सलूजा दिल्ली के कालकाजी सरकारी स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा ली ।उस दौरान कक्षा 11 मेंं वह टीम के कैप्टन भी रहे। उभरते क्रिकेटर के रूप में छाए रहने के बाद देशबंधु कॉलेज में शिक्षा देने के दौरान 1969 में भी वह टीम के कैप्टन है उसके बाद उन्होंने दिल्ली लीग में भी शानदार परफॉर्मेंस से हर किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया ।देश के महान बल्लेबाज मोहिंदर अमरनाथ के साथ नेट साझा करने वाले गुरविंदर सलूजा ने बताया कि पिता की बीमारी के चलते उन्हें क्रिकेट छोड़ना पड़ा ।उसके बाद परिवार की जिम्मेदारियों को संभालते हुए उन्होंने बिजनेस की दुनिया में कदम रखा और दिल्ली के खान मार्केट में डिपार्टमेंटल स्टोर व एक ट्रैवल एजेंसी के माध्यम से खूब नाम कमाया। समाजसेवी सलूजा के अनुसार उनके पिता कैंसर के पेशेंट थे ।वर्ष 1959 में उनका दिल्ली में ही उनकाऑपरेशन हुआ जिसके बाद चिकित्सकों की राय पर उन्होंने ऋषिकेश आना शुरू कर दिया। वह ऋषिकेश में उस दौरान मस्त बाबा के आश्रम में रहकर उनकी सेवा करते थे ।वर्ष 1988 में उनके शरीर छोड़ने के बाद पिता उदास रहने लगे उनकी उदासी को देख उन्होंने उन्हें कहा कि मैं ऋषिकेश में आपके लिए एक आश्रम का निर्माण करा देता हूं जिसके जरिए हम लोगों की सेवा किया करेंगे। इससे पहले कि आश्रम का निर्माण हो पाता वर्ष 1993में पिता का देहांत हो गया। गुरविंदर सलूजा के अनुसार कुछ वर्षों तक उक्त योजना को वह परवान नहीं चड़ा सके ।लेकिन वर्ष 2013 में उन्होंने ऋषिकेश के शीशम झाड़ी क्षेत्र में ज्ञान करतार आश्रम की स्थापना कर कात्यायनी मंदिर का निर्माण कराया। यहां से शुरू हुई समाज सेवा के दौरान उन्हें महसूस हुआ कि क्षेत्र में गरीब बच्चों के लिए स्कूल की बेहद आवश्यकता है जिसको देखते हुए उन्होंने एक निःशुल्क स्कूल की स्थापना भी करा दी। अब उनके जीवन का एक ही लक्ष्य है लोगों की मदद करना जिसमें वह दिन-रात शिद्दत के साथ जुटे हुए हैं।

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