भाषा ही समाज का प्रतिबिम्ब-स्वामी चिदानन्द

भाषा ही समाज का प्रतिबिम्ब-स्वामी चिदानन्द

ऋषिकेश- “मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी अंग्रेज सरकार के कफन में कील साबित होगी”। यह कथन स्वराज्य के महान उपासक लाला लाजपत राय ने अपने आखिरी भाषण में कहा था। इस कथन ने ‘भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन’ को एक संबल प्रदान किया था।
लाला लाजपत राय ने 19वीं सदी के अंत में अकाल और विपदा से जो भारतीय प्रभावित हुये थे उनके कल्याण के लिए कई कार्य किये। उन्होंने अपना पूरा जीवन नारी शक्ति, विधवाओं एवं अनाथ बच्चों के कल्याण और सेवा में लगाया तथा अछूतों के उद्धार के लिये अछूतोद्धार आन्दोलन चलाया। साथ ही भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन, असहयोग आंदोलन में पंजाब का नेतृत्व किया तभी से उन्हें ‘शेर-ए-पंजाब’ की उपाधि से संबोधित किया जाने लगा। वे भारतीय समाज में व्याप्त ऊँच-नीच के भेद को समाप्त करना थे और उसके लिये जीवन पर्यंत कार्य करते रहे।





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परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने लाला लाजपत राय की जयंती पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हुये कहा कि लाला जी हिन्दी भाषा के महान उपासक थे। उन्होंने हिन्दी में शिवाजी, भगवान श्रीकृष्ण और कई अन्य महापुरुषों की जीवनियाँ लिखीं तथा हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु बहुत बड़ा योगदान दिया। भारत में हिन्दी भाषा लागू करने के लिये उन्होंने हस्ताक्षर अभियान भी चलाया था।
स्वामी चिदानंद ने कहा कि हिन्दी को संरक्षित करना नितांत आवश्यक है क्योंकि उसमें ही हमारी सभ्यता, संस्कृति और हमारी पहचान समाहित है। हिन्दी में हमारे धर्मग्रन्थ और हमारा अस्तित्व समाया है ।अगर इसे संरक्षित नहीं किया तो आने वाली पीढ़ियों के लिये अपने मूल ग्रन्थों को जानना बहुत मुश्किल हो जायेगा। किसी देश या समुदाय की संस्कृति व सभ्यता को जानना और समझना है तो उसकी भाषा को समझना और संरक्षित करना अति आवश्यक है इसलिये हिन्दी भाषा का समृद्ध होना बहुत जरूरी है और हम सभी भारतवासी मिलकर इसे समृद्ध और जीवंत बना सकते हैं।
स्वामी चिदानंद ने कहा कि भारत वर्षों तक आक्रमणकर्ताओं के कब्ज़े में रहा परन्तु हमारे पूर्वजों ने अपनी भाषा, संस्कृति और संस्कारों को सहेज कर रखा क्योंकि भाषा ही किसी भी समाज का प्रतिबिम्ब होती है। यदि वही संरक्षित व सुरक्षित नहीं रहेगी तो हमारे अस्तित्व और प्रतिबिम्ब को सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है। हिन्दी को संरक्षण देने के लिये सरकार और समाज दोनों मिलकर कार्य करना होगा और यही लाला लाजपत राय को सच्ची श्रद्धाजंलि होगी।

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