मेवाड के सूर्य महाराणा प्रताप को स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने अर्पित की भावभीनी श्रद्धांजलि

मेवाड के सूर्य महाराणा प्रताप को स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने अर्पित की भावभीनी श्रद्धांजलि

ऋषिकेश- इतिहास केवल वह नहीं है जो हमारी किताबों में लिखा है बल्कि वह है जिसकी छाप हमारे दिलों में अमिट है; जिसकी मिसालें आज भी दी जाती हैं, जिसकी शौर्य गाथा आज भी गीतों के रूप में जुबां पर है, जिसकी स्मृतियाँ आज भी लोगों के दिलों में जीवंत हैं और जिसकी गूँज आज भी राजस्थान के रेगिस्तानों में गूंज रही है, ऐसे भारत माता के सुपुत्र, शौर्य व साहस के प्रतीक शूरवीर वीर योद्धा व अनमोल रत्न महाराणा प्रताप को भावभीनी श्रद्धांजलि और उनकी देशभक्ति को शत-शत नमन। मेवाड़ का यह सूर्य आज के दिन ही सदा के लिए अस्त हो गया थे परन्तु आने वाली पीढ़ियों के लियेे संदेश दे गये तथा मातृभूमि का स्वाभिमान, आत्मसम्मान, वीरता, धैर्य और साहस की एक स्वर्णिम इबारत लिख गये जो कि अमिट है और भारत को गौरवान्वित करने वाली है।





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स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने शौर्य, स्वाभिमान और वीरता के प्रतीक महाराणा प्रताप को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुये कहा कि महाराणा प्रताप हम सभी के प्रेरणा स्रोत है, उन्होंने हमें मातृभूमि के प्रति अतुल्य प्रेम और स्वाभिमान की प्रेरणा दी। राष्ट्रप्रेम के आदर्श को आत्मसात कर राष्ट्र निर्माण की प्रेरणा हमें महाराणा प्रताप ने ही दी और यह संदेश दिया कि अपने स्वाभिमान को इतना ऊंचा रखो कि कठिन से कठिन परिस्थितियां भी आपके सामने आयें तो भी आत्मविश्वास कभी कम न हो सके। जीवन में हमेशा धैर्य और मातृभूमि के प्रति अपनी निष्ठा रखें और अपने कर्तव्यों को समझें।
“बुक ऑफ प्रेसिडेंट यु एस ए‘ किताब में लिखा है कि जब इब्राहिम लिंकन भारत दौरे पर आ रहे थे, तब उन्होने अपनी माँ से पूछा कि- हिंदुस्तान से आपके लिए क्या लेकर आयें ? तब माँ का जवाब मिला- ”उस महान देश की वीर भूमि हल्दी घाटी से एक मुट्ठी मिट्टी लेकर आना, जहाँ का शासक अपनी प्रजा के प्रति इतना वफादार था कि उसने आधे हिंदुस्तान के बदले अपनी मातृभूमि को चुना ।” वास्तव में धन्य है भारत भूमि जिस पर मर मिटने वाले ऐसे वीर हुये जिनको इस देश की माटी अपने प्राणों से प्रिय थी।
स्वामी चिदानंद ने कहा कि भारत की गौरवशाली संस्कृति और इतिहास से नई पीढ़ी का परिचय कराना बहुत जरूरी है। अगर हम अपनी आज की युवा पीढ़ी को इन गरिमामय मूल्यों और संस्कारों से नहीं जोडेंगे तो सच मानें हम नैतिकता के आधार पर सदियों पीछे हो जायेंगे। आज की युवा पीढ़ी का हल्दी घाटी के युद्ध जैसे वृतांतों से परिचय कराया जाये ताकि वे महाराणा प्रताप और उनके सैनिकों की वीरता और अदम्य साहस की ऐतिहासिक दास्तान से जुड़ सकें।

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