’भागो नहीं बल्कि जागो’-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

’भागो नहीं बल्कि जागो’-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश- 19 वीं सदी के भारत में आज के दिन अध्यात्म जगत के शिरोमणि, एक ऐसे चिंतक का जन्म हुआ था जिन्होंने भारत के गौरव, भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक चिंतन को सात समन्दर पार तक पहुंचाया। ऐसे महान संत स्वामी विवेकानन्द की जयंती पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हुये स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि शिकागो में आयोजित ‘विश्व धर्म महासभा’ में उन्होंने हिंदू धर्म को सहिष्णु तथा सार्वभौमिक धर्म के रूप में व्यक्त कर पूरे विश्व को दिखा दिया कि यह केसरी रंग केवल दिखता ही केसरी नहीं है बल्कि इसमें हमारे देश की गरिमा, त्याग और हमारा साहस भी समाहित है।





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स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने राष्ट्रीय युवा दिवस के अवसर पर युवाओं का आह्वान करते हुये कहा कि समस्याओं और चुनौतियों से ’भागो नहीं बल्कि जागो’, उनका सामना करो और आगे बढ़ो। युवा अपने कार्यो के प्रति लगनशील, निष्ठावान, कर्तव्यनिष्ठ और ऊर्जावान बनें, समय का उपयोग करें, अवसरों को पहचाने, एजूकेटेड, अपडेटेड और अपलिफ्टेड भी बनंे तथा अपना आध्यात्मिक और सांस्कृतिक (स्पिरिचुअल व कल्चर) पक्ष मजबूत रखें।
स्वामी विवेकानन्द ने जीवन के बड़े ही सरल और सहज सूत्र दिये। इन सूत्रों पर अमल कर व्यावहारिक और आध्यात्मिक जीवन में उन्नति के उच्च सोपानों तक पहुंचा जा सकता है। उनके द्वारा दिया गया यह सूत्र कि ‘प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करो’ आज भी उतना ही प्रासंगिक है। इस सिद्धान्त पर अमल कर युवा सफलता के आसमान को छू सकते हैं। ’’उठो, जागो और तब तक रूको नहीं जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए’।’’ कितना अद्भुत दर्शन और चिंतन छुपा है इसमें, ये चितंन जोश, ऊर्जा, एक नया उत्साह और नई उमंग नौजवानों में पैदा कर सकता है और वास्तव में आज भारत को ऐसे ही साहसी और फोकसड्, एकाग्रता से पूर्ण नौजवानों की जरूरत है। जो चट्टानों से टकराये उसे तूफान कहते हैं और जो तूफानों से टकराये उसे नौजवान करते हैं, ये तभी सम्भव है जब हमारा ध्यान केन्द्रित हों, भीतर से मजबूत हों और एकाग्रचित हों।
स्वामी चिदानंद ने कहा कि किसी भी राष्ट्र के नौजवान जागरूक हों, अपने लक्ष्य के प्रति निष्ठावान एवं समर्पित हों, तो वह देश उन्नति के शिखर छू सकता है इसलिये युवाओं को अपनी सफलता के साथ देश के प्रति समर्पण की भावना विकसित करना नितांत आवश्यक हैै। आज के युवाओं को लक्ष्य प्राप्ति की प्रेरणा देने के साथ ही भविष्य की चुनौतियों से निपटने, आध्यात्मिक बल एवं शारीरिक बल में वृद्धि करने के लिये भी प्रेरित करेगा क्योंकि किसी देश की पहचान, योग्यताओं तथा क्षमताओं में वृद्धि उस देश के नागरिकों के शिक्षा के स्तर से ही होती है। कहा कि, भारत सहित पूरे विश्व को ऐसे युवाओं की जरूरत है जो धर्म को साहित्य में न खोजें बल्कि प्रत्येक प्राणी के हृदय में अनुभव करें।

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