कोरोनाकाल में दुनिया ने महसूस की आयुर्वेद की उपयोगिता -डॉ डीके श्रीवास्तव

कोरोनाकाल में दुनिया ने महसूस की आयुर्वेद की उपयोगिता -डॉ डीके श्रीवास्तव
ऋषिकेश- अंतर्राष्ट्रीय आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉक्टर डीके श्रीवास्तव का कहना है कि कोरोना ने लोगों के रहन-सहन खान-पान को ही नहीं बदला चिकित्सा पद्धति में भी नए विकल्पों और उनकी उपयोगिता पर मंथन करने को विवश किया है।किसी विषय पर विरोध के लिए बंद का आह्वान करके रोगियों को परेशान करके यह सोचना कि हम नही तो कोई और नही या इस कारण से हमारी मांगे मानी जाय ,यह बताता है कि अहंकार किस स्तर पर है। विरोध का तरीका कार्य को बंद करने से नही स्वयं को सिद्ध करने से होना चाहिए।सदैव स्वस्थ प्रतिस्पर्धा से समाज एवं देश का हित होता है। “सरवाइवल ऑफ दी फिटेस्ट ” आप मुकाबला कीजिये अपना श्रेष्ठ दीजिये, हड़ताल नही।
उक्त व्यक्तव्य भारतीय चिकित्सा परिषद के संकाय उपाध्यक्ष एवं अंतरराष्ट्रीय आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ0 डी0 के0श्रीवास्तव ने आई एम ए द्वारा चिकित्सकों के 11 दिसंबर को होने वाले हड़ताल पर दिया।
परिषद के संकाय उपाध्यक्ष डॉ0 श्रीवास्तव ने आगे कहा कि जिस व्यक्ति को अपने देश एवं उसकी संस्कृति से प्रेम नही होता वो कदापि सर्वश्रेष्ठ नही हो सकता। आयुर्वेद विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति , विद्या ही नही एक स्वस्थ्य जीवन विज्ञान है ,यह तथ्य सार्वभौमिक रूप से प्रमाणित एवं अकाट्य है।
एलोपैथी जैसी पाश्चात्य चिकित्सा विज्ञान की भी आज आवश्यकता और चिकित्सा में भरपूर योगदान है जो सर्व विदित है ,परंतु इसके विकास के पूर्व आयुर्वेद ही जन जन को स्वास्थ्य प्रदान करती रही जिसमे शल्य कर्म भी होते थे ।आधुनिक विज्ञान भी आयुर्वेद के सर्जन आचार्य सुश्रुत को फादर ऑफ प्लास्टिक सर्जरी मानता है , यही नही कैलिफोर्निया में लगे आचार्य जीवक के तेल चित्र के नीचे लिखा फर्स्ट न्यूरोसर्जन ऑफ दी वर्ल्ड इस विधा की पुष्टि करता है । आचार्य सुश्रुत ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक सुश्रुत संहिता में एक सौ एक यंत्र, बीस शस्त्र और पच्चीस उपयंत्रो का जो वैज्ञानिक वर्णन किया है उसमें आज तक कि विकसित तकनीकी भी कुछ नया नही जोड़ पाई, इतना ही नही आयुर्वेद का छारसूत्र चिकित्सा आज आल इंडिया इंस्टीट्यूट और पी जी ऑय चंडीगढ़ में एनोरेक्टल सर्जरी का माध्यम बना हुआ है।
डब्ल्यू एच ओ भी इसे श्रेष्ठ मानता है।
डॉ0 श्रीवास्तव ने कहा कि वर्तमान में विज्ञान फिजिक्स , केमेस्ट्री द्वारा विकशित और अन्वेषित ज्ञान और संसाधनों का प्रयोग करना प्रत्येक विधा एलोपैथी या आयुर्वेद को समानभाव से अपने चिकित्सा में उपयोग कर जनमानस को लाभ देना चाहिए ।आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के चिकित्सकों को सोचना चाहिए कि प्रत्येक सिस्टम और प्रत्येक चिकित्सा की एक सीमा होती है कही उनके प्रयास कारगर है कही अन्य चिकित्सा पद्धतियों के, आयुर्वेद में भी कई लोग एलोपैथी का भी प्रयोग करते है और एलोपैथी में भी कई लोग आयुर्वेद का इस्तेमाल करते हैं। देश मे जहाँ जसकी जरूरत हो वहाँ उसका इस्तेमाल करना ही बेहतर है ।आयर्वेद का सर्जन भी 9 वर्षो के कठिन अध्यन के बाद शल्य क्रिया की पात्रता रखता है, वर्तमान सरकार ने आयुष चिकित्सा को बढ़ावा देने को लेकर शुरू से ही संतोष जनक कार्य किया है इसलिए ये नया अध्यादेश जिसमे 53 तरह के शल्य कर्म आयुर्वेद के सर्जन कर सकते है, स्वागत योग्य है और इससे देश की चिकित्सा व्यवस्था में मील का पत्थर साबित होंगे एवं बेहतर और स्वास्थ्य समाज का निर्माण होगा।सभी पैथियों को एक दूसरे का सम्मान करते हुए चिकित्सा ज्ञान विज्ञान का प्रयोग और प्रसार आम जनता को देकर सिम्पैथी को बढ़ावा देना चाहिए।