मैथिली ठाकुर के मांगल गीत ने उत्तराखंड की संस्कृति में लगाए चार चांद-कुसुम जोशी

मैथिली ठाकुर के मांगल गीत ने उत्तराखंड की संस्कृति में लगाए चार चांद-कुसुम जोशी
ऋषिकेश- शादियों के सीजन में इन दिनों मैथिली ठाकुर के द्वारा गाए गए गीत की धूम मची हुई है। देश दुनिया में अपनी सुरीली आवाज से बुलंदियों को छू रही युवा पार्श्व गायिका मैथिली ठाकुर का मंगल गीत गढ़वाल की संस्कृति से जुड़े लोगों के दिलों को छू गया है।
गढ संस्कृति के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे मैत्री संगठन की अध्यक्ष कुसुम जोशी ने बताया कि मैथिली ठाकुर ने जिस सुरीले अंदाज मे और जिस भाव के साथ मांगल गीत गाया है, वह संगीत प्रेमियों के लिए एक आनंद दायी क्षण है। मैथिली ठाकुर ने गढवाली मांगल को उसी तर्ज पर गाया है, जिस तर्ज पर गढवाली महिलायें गाती थी। यह वाकई मे गढवाली संस्कृति के लिए गौरव की बात है कि उनके यहॉ गाये जाने वाले मॉगलिक गीतों में वह आनन्द और मधुरता है कि वह बिहार की धरती में भी गुंजायमान हो गये हैं। उन्होंने कहा कि यह इस बात को भी दर्शाता है कि हमारे लोकगीतों में कितना अपनापन है।मैत्री संगठन की अध्यक्ष कुसुम जोशी के अनुसार मैथिली ठाकुर ने जिस मांगल गीत को आवाज दी है वह कन्या दान पर आधारित है।
देवभूमि उत्तराखण्ड में मांगलिक कार्यों में गाये जाने वाले मॉगल गीत इसी बात के द्योतक हैं, कि हमारे यहॉ शादी- विवाह या मुडंन के समय पहले मनोरंजन के लिए इस तरह के मांगलगीत गाये जाते थे। कुसुम जोशी कहना हें कि मांगल गीत हर संस्कारों के लिए बने हैं, नामकरण, जनेउ, मुंडन, शादी, आदि सभी मांगलिक अवसरों के लिए मॉगलिक गीतों के माध्यम से शुभकामनाये देने की परम्परा रही है।उन्होंने कहा कि विवाह समारोह में होने वाले अनायास खर्च करने के बजाय, मांगल गीतों को गाने वाले कलाकारों को प्रोत्साहित करें, इससे मॉगल गीत ही नहीं फलेगें फूलेंगे बल्कि संस्कृति भी परिस्कृत होगी।मैथिली ठाकुर ने जिस अंदाज और गढवाली शब्दों को शुद्ध और सुंदर उच्चारण किया है, वह यह भी सीखाता है कि हमें अपनी भावी पीढी को अपनी लोकभाषा का महत्व बताना होगा,वर्ना सिर्फ चिराग तले अंधेरा वाली कहावत ही चरितार्थ होती रहेगी।