त्याग और बलिदान के प्रतीक हैं गुरू तेग बहादुर-चिदानंद मुनि

त्याग और बलिदान के प्रतीक हैं गुरू तेग बहादुर-चिदानंद मुनि
ऋषिकेश- सिख सम्प्रदाय के नौवें गुरू तेग बहादुर के शहादत दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले तथा भारत और भारतीय संस्कृति के लिये अपना सिर कलम कराने वाले सिख सम्प्रदाय के नौवें गुरू तेग बहादुर की शहीदी दिवस पर उनकी राष्ट्रभक्ति को नमन।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि गुरु तेग बहादुर राष्ट्रभक्त और भारतीय संस्कृति से प्रेम करने वाले थे। वे त्याग और बलिदान के प्रतीक थे, उन्होंने भारतीय संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया था। भारतीय संस्कृति के आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी। गुरू तेगबहादुर जी ने धर्मांन्तरण के विरूद्ध आवाज उठायी थी। वास्तव में धर्मांन्तरण आज भी विकट समस्या है। भारत एक बहुधार्मिक एवं पंथनिरपेक्षता राष्ट्र है तथा धर्म तो आत्मा से स्वीकार किया जाता है। जबरन धर्मान्तरण से राष्ट्र की एकता और अखंडता को भी खतरा है इसलिये ऐसी संविधान विरूद्ध गतिविधियां न करें और न किसी को भी इसके लिये प्रेरित करें।
स्वामी चिदानंद ने कहा कि भारत को अखंड और अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये हमारे पूर्वजों ने अपना सर्वस्व बलिदान कर विविधता में एकता को बनाये रखा। भारत की विविधता ही उसकी शक्ति है, जिसे बनाए रखना हम सबकी जिम्मेदारी है।
गुरू तेग बहादऱ सिख सम्प्रदाय के नवें गुरु थे, जिन्होने सिख सम्प्रदाय के प्रथम गुरु नानक जी की शिक्षाओं का अनुसरण करते हुये अपने जीवन का बलिदान किया। बलिदान न केवल धर्म रक्षण के लिए बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिये किया था। धर्म उनके लिए सांस्कृतिक मूल्यों और जीवन विधान का नाम था।