पर्वों में शोर नहीं बल्कि शान्ति हो-स्वामी चिदानन्द

पर्वों में शोर नहीं बल्कि शान्ति हो-स्वामी चिदानन्द

ऋषिकेश- परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कार्तिक मास में दिये अपने संदेश में कहा कि भारतीय सभ्यता में धर्म, संस्कार, पर्व-त्योहार, रीति-रिवाज एवं परंपराओं का अद्भुत समन्वय है। भारत में प्राचीनकाल से ही संस्कृति, संस्कार और जीवन पद्धति, आध्यात्मिक रही है, इसी कारण भारतीय संस्कृति ने वैश्विक स्तर पर अमिट छाप छोड़ी है। स्वामी जी ने कहा कि भारतीय संस्कार, रीति-रिवाज और परंपराएँ हमारे जीवनशैली का महत्वपूर्ण अंग हैं। भारतीय संस्कृति सभी को समाहित करने और सामंजस्य स्थापित करने की संस्कृति है।
भारतीय संस्कृति में सहिष्णुता, आध्यात्मिकता और वैज्ञानिकता का अद्भुत सामंजस्य है। यह संस्कृति नैतिकता से युक्त और वसुधैव कुटुंबकम् के भाव से ओत-प्रोत है।

स्वामी चिदानंद ने कहा कि उदारता के गुणों से युक्त भारतीय संस्कृति अपने परम्परागत अस्तित्व के साथ विश्व को मानवता का संदेश दे रही है। यह संस्कृति प्राचीनकाल से ही प्रकृति की उपासक रही है। परन्तु वर्तमान समय में परिवारों से संस्कार खोते दिखायी दे रहे हैं; आपसी विश्वास, व्यवहार में मानवता और स्वभाव में नैतिकता की कमी दिखायी दे रही है। हमारी वर्तमान संस्कृति, संस्कारवाद से बाजारवाद की ओर बढ़ रही है। प्रकृति की उपासक नहीं बल्कि विध्वसंक होती जा रही है। हमारे पर्व और त्योहार हमें यही याद दिलाते हैं कि कैसे आपस में मिलकर रहें तथा आपसी एकता, सामन्जस्य को कैसे बनाये रखें। हमें पर्वो के प्राचीन स्वरूप को परिवारों में वापस लाना होगा।कार्तिक माह पर्व और त्योहार के माध्यम से सभी के जीवन में खुशियां लेकर आता है और ये खुशियां केवल स्वयं तक सीमित न रहें बल्कि हमारी खुशियों में हमारी प्रकृति, पर्यावरण और धरती पर रहने वालीे प्राणी भी प्रसन्न और सुरक्षित रहें। यही तो मानवता है और मानव होने के नाते सभी का परम कर्तव्य भी है।उन्होंने कहा कि पर्वों को मनाते हुये विशेष ध्यान रखा जाये कि वायु प्रदूषण न हो, शोर न हो, जल प्रदूषण न हो। स्वामी जी ने कहा कि हम सभी का यह प्रयास होना चाहिये कि हमारे आस-पास का वातावरण स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त रहे। हमारे पर्वों में शोर नहीं बल्कि शान्ति हो जिससे हमारे आस-पास रहने वाले जीव जन्तु भी आराम से रह सकें इसलिये हमारे पर्व और त्योहर हरित और स्वच्छ हों।

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