विजयदशमी पर्व पर बुराइयों को खत्म करने का लें “संकल्प”

विजयदशमी पर्व पर बुराइयों को खत्म करने का लें “संकल्प”
ऋषिकेश – कोरोनाकाल के चलते देशभर में इस वर्ष भले ही आज विजयदशमी पर्व पर रावण का दहन ना किया जा सका हो लेकिन खुद की बुराइयों का अंत करने का संकल्प तो किया ही जा सकता है।
विजयादशमी यानी बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व। असत्य पर सत्य की विजय का उत्सव। इस बार बुराई के प्रतीक रावण का दहन नही होगा, मगर, चिता इस बात की है कि जनता की समस्यारूपी बुराइयों का अंत करने राम कब आएंगे? आम जनता को मूलभूत समस्याएं ही निगले जा रही हैं। नवरात्र के दिनों ही देवी स्वरूप नारी पर उत्पीडऩ व अत्याचार की घटनाएं सामने आईं। दशानन की तरह समाज में विद्रूपता के अनेक चेहरे सामने आए। विडबंना ये रही कि हम अपने अंदर के अहंकार व बुराई रूपी रावण को पूरी तरह खत्म नहीं कर पाए। हकीकत में विजयादशमी का संदेश निरर्थक साबित हो रहा है। आखिर कब मरेगा नई-नई सूरत में जन्म ले रहा रावण ?
पार्षद राजेंद्र प्रेम सिंह बिष्ट का कहना है व्यक्ति का अहंकार उसे सर्वनाश की ओर ले जाता है। विजयादशमी पर सबको संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने अंदर कभी अहंकार को व्याप्त नहीं होने देंगे। दौलत और शोहरत मिलने के बाद भी सहज और सरल बने रहेंगे। दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहेंगे। यही मानवता की सबसे बड़ी परिभाषा है। अहंकारियों का सिर अंत में हमेशा नीचा होता है, जैसे दशानन रावण का हुआ। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की प्रदेश सह मंत्री अंजली शर्मा का कहना है कि नौ देवियों के आह्वान से दशानन का अंत हुआ। हमारे समाज में नारियों को देवी स्वरूप मना गया है। आज भी समाज में दहेज उत्पीडऩ, महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं। उन्हें प्रताडि़त किया जाता है। देश में आए दिन ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं। इसके लिए जिम्मेदार कहीं न कहीं समाज में व्याप्त बुराई और महिलाओं के प्रति संकीर्ण सोच है।आज के दिन संकल्प लें कि नारियों का सम्मान करेंगे, उनकी रक्षा भी अपना धर्म समझेंगे।युुुवा व्यापारी नेता प्रतीक कालिया के अनुसार इस बार कोरोना महामारी ने खूब कोहराम मचाया है।प्रदेश में ही हजारों लोग कोरोना की चपेट में आ चुके हैैं। तीर्थ नगरी ऋषिकेश में भी अनेेेकों लोग
वैश्विक महामारी की वजह से काल का ग्रास बन गए। कोरोना को मात देने के लिए संकल्प लें कि घर से बिना मास्क के नहीं निकलेंगे। शारीरिक दूरी का पालन करेंगे। युवा समाजसेवी जितेंद्र पाल पाठी के अनुसार भ्रष्टाचार इन दिनों चरम पर है। सरकारी विभागों में बड़े अफसरों की सख्ती के बाद भी यह खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। लोगों की आज भी धारणा बना हुई है कि जब तक पैसे नहीं देंगे, काम नहीं होगा। इस बुराई को भी खत्म करना होगा।