लोकनायक जयप्रकाश नारायण का आदोंलन सत्ता के लिए ही समानता के लिए था-स्वामी चिदानंद

लोकनायक जयप्रकाश नारायण का आदोंलन सत्ता के लिए ही समानता के लिए था-स्वामी चिदानंद
ऋषिकेश- भारत रत्न, भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, समाज सेवक और लोकनायक जयप्रकाश नारायण को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि जी. पी. ने भ्रष्टाचार मिटाने, बेरोजगारी दूर करने, शिक्षा में क्रांति लाने हेतु जो सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन चलाया था, वास्तव में वह एक परिपूर्ण आन्दोलन था। उनके ’’सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन’’ में राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक व आध्यात्मिक विषयों से युक्त सात क्रान्तियाँ शामिल थी। वास्तव में इन सातों क्रान्तियों की वर्तमान समय में भी नितांत आवश्यकता है। वर्तमान समय के युवाओं को शिक्षा के साथ अध्यात्म से जोड़ना जरूरी है, साथ ही वे अपनी सांस्कृतिक विरासत से जुड़े रहे, अपने मूल्यों से जुड़े रहे, संस्कारों से युक्त शिक्षा, आर्थिक विकास के लिये आत्मनिर्भर भारत हेतु योगदान प्रदान करना आदि आज की जरूरतें हैं। युवा संस्कारवान हो, सर्वे भवन्तु सुखिनः, वसुधैव कुटुम्बकम् एवं आनो भद्रा क्रतवो यन्तु विश्वतः आदि ऋषियों के द्वारा दिये दिव्य मंत्रों को अपने जीवन में साथ लेकर चलते रहे तो केवल परिवार, समाज और देश का ही नहीं बल्कि विश्व के पटल पर एक अद्भुत छाप छोड़ सकता है। आज के आधुनिक ऋषि स्वामी विवेकानन्द हम सब के समक्ष एक आदर्श है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती महाराज ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा, विशाल और विविधता से युक्त लोकतंत्र है। जय प्रकाश नारायण जैसे व्यक्तित्व ने भारत के लोकतंत्र को मजबूत बनाने हेतु अखंड पुरूषार्थ किया था। उनका मानना था कि युवाओं को राजनीति में प्रवेश करना चाहिये, क्योंकि विवेक, ज्ञान और ऊर्जा से परिपूर्ण छात्र ही एक जागरूक राष्ट्र का निर्माण कर सकता है। उनका मानना था कि युवावर्ग समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं। स्वामी चिदानंद ने कहा कि युवा किसी भी राष्ट्र की एक मूल्यवान संपत्ति ही नहीं बल्कि उस राष्ट्र का भविष्य होते हैं। स्वामी चिदानंद ने कहा कि भारतीय संस्कारों से युक्त शिक्षा से शिक्षित युवा समृद्ध राष्ट्र के निर्माण में बेहतर योगदान दे सकता है।
स्वामी चिदानंद ने कहा कि आज की भागदौड़ भरी जीवन शैली के साथ बढ़ते लालच और हिंसा के इस वातावरण में जयप्रकाश नारायण जी और महात्मा गांधी की शिक्षाऐं एक समाधान लेकर आती हैं। उन विचारधाराओं को अपनाकर उन्हें आत्मसात करके एक सार्वभौमिक राष्ट्र का निर्माण किया जा सकता है। स्वामी जी ने कहा कि श्रेष्ठ महापुरूषों के विचार हर युग के लिये प्रासंगिक हैं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि जय प्रकाश का आन्दोलन सत्ता के लिये नहीं था बल्कि समानता के लिये था। उनका आन्दोलन केवल राजनीतिक आजादी के लिये नहीं बल्कि हर व्यक्ति को समान अधिकार और शोषण से मुक्त जीवन के अधिकार मिले इसके लिये था। उनके विचारों में सच्चाई, निडरता और अहिंसा का सामवेश था।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने देश के युवाओं का आह्वान करते हुये कहा कि देश का युवा अपनी ऊर्जा को राष्ट्र भक्ति और राष्ट्र सेवा में लगाये यही जय प्रकाश नारायण को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।