उत्तराखंडी फिल्मों के “नायाब रत्न” हैं अशोक चौहान!

उत्तराखंडी फिल्मों के “नायाब रत्न” हैं अशोक चौहान!

ऋषिकेश- गढवाली फिल्मों का कल का सुपरस्टार आज एक बेजोड़ निर्देशक के रूप में गढ संस्कृति के कलाकारों को तराशने में शिद्दत के साथ जुटा हुआ है।

हम बात कर रहे हैं विदै, गंगा का मैती, सात फेरों का सातो वचन ,जन्मू कू साथ ,औसी की रात ,गोगई सहित दर्जनों सुपर हिट फिल्म देने वाले गढ़वाली फिल्मों के महानायक रहे अशोक चौहान की।
पूत के पांव पालने में ही पता लग जाते हैं यह कहावत अशोक चौहान पर पूरी तरह से चरितार्थ होती है।ऋषिकेश के श्री भरत मंदिर इंटर कॉलेज मैं 80 के दशक के मध्य में शिक्षा ग्रहण करने के दौरान ही उनकी प्रतिभा के दर्शन विद्यालय के तत्कालीन प्रधानाचार्य कैप्टन डी डी तिवारी व अन्य शिक्षकों सहित उस दौर में उनके सहपाठी रहे बच्चों को दिखाई देने लगे थे।
रंगमंच व सिनेमा के क्षेत्र में वर्षों सक्रिय रहे अशोक चौहान एक रंगकर्मी, फिल्म एवं टीवी कलाकार और निदेशक के रूप में उत्तराखंड का एक ऐसा नाम है जिसने पहले अपनी गढ़वाली फिल्मों के नायक के रुप में सफलता का चरम व स्टारडम देखा था आज निर्देशक के रूप में अपने योगदान से वे इस क्षेत्र को समृद्ध करने में लगे हैं।
अपने शैक्षणिक काल में गढ संस्कृति के नाटकों में सशक्त अभिनय के साथ महान गायक मुकेश के गानों को जब वह अपनी सूरमई आवाज में प्रस्तूत करते थे तो समां बंध जाता था।

ऋषिकेश के महाविद्यालय से नब्बे के दशक में बीएससी करने के दौरान ही उन्होंने फिल्म प्रोड्यूस कर साबित कर दिया था कि वह फिल्मों के क्षेत्र में लंबी रेस के कलाकार हैं। उसके बाद रंगमंच के जरिए उन्होंने अपनी कला को तराशने में कोई कमी नहीं छोड़ी ।मुंबई जाकर उनका यह संघर्ष रंग लाया और उन्होंने हिंदी फिल्म खूनी जलजला के जरिए हीरो के रूप में अभिनय किया ।इसके बाद उन्होंने विख्यात निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट के सीरियल में काम करने के अलावा इजराइली फिल्म में इंडिया के कैमरामैन के रोल को भी बेहद खूबसूरती से निभाया। लेकिन अपनी मिट्टी से बेपनाह प्यार करने की वजह से वह वापस उत्तराखंड लौट आए और उन्होंने गढ़वाली फिल्मों में अपना कैरियर बनाने के लिए प्रयास शुरू कर दिए। प्रतिभा के धनी रहे अशोक चौहान को काम मिला तो फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। करीब 2 दशक तक गढ फिल्मों में उनका सिक्का इस कदर चला कि उन्होंने हिट फिल्मों की झड़ी लगा दी। वक्त का पहिया तेजी से गुजरा और कल का महानायक आज एक निर्माता-निर्देशक बनकर उत्तराखंड में फिल्मी कलाकारों को तराशने में जुटा हुआ है। अशोक चौहान की माने तो वह बचपन में एक सिंगर बनना चाहते थे लेकिन लोगों ने उन्हें कलाकार बना दिया। वर्तमान में जोली ग्रांट मे रह रहे अशोक चौहान बताते हैं कि पिछले करीब चार दशकों से जारी उनका संघर्ष आज भी बदस्तूर जारी है । फिलहाल अपने खैरी का दिन फिल्म के निर्माण में जुटे अशोक चौहान के अनुसार उत्तराखंड सरकार को गढ़वाली फिल्मों के निर्माण मे सहयोग की नीति बनानी चाहिए वर्ना आने वाले समय में फिल्मों का निर्माण ही एक बहुत बड़ी चुनौती बन कर रह जाएगा।

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