सफलता के जश्न के साथ असफलता को स्वीकार करना ही जीवन-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

सफलता के जश्न के साथ असफलता को स्वीकार करना ही जीवन-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश- आज विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने भारत सहित विश्व के युवाओं का आह्वान करते हुये कहा कि आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार विश्व के विभिन्न देशों में आत्महत्या की रोकथाम के लिये अनेक प्रयास किये जा रहे हैं उसके बावजूद, प्रत्येक 40 सेकेंड में आत्महत्या के कारण एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। प्रत्येक मृत्यु, मृतक के परिवार, दोस्तों और सहकर्मियों के लिये एक त्रासदी के समान ही है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि आत्महत्या करने वाले में सामान्यतः सभी वर्गों के लोग होते हैं परन्तु इसमें युवाओं का एक बड़ा वर्ग है जो कि जीवन शुरू होने से पहले ही आत्महत्या को गले लगा लेते हैं। उन्होंने कहा कि आत्महत्या की रोकथाम के लिये जो भी प्रभावी कदमहैं उसे स्थायी रूप से हमारे पाठ्यक्रम में शामिल करना होगा। हमारी शिक्षा में पाठ्यक्रम के साथ संस्कार, मूल्य और मूल को शामिल करना होगा। वर्तमान शिक्षा पद्धति और जो सामाजिक सोच है वह काफी हद तक युवाओं में केवल काम्पीटिशन पैदा करती है; जीवन मूल्यों से ज्यादा अकादमिक प्रदर्शन को महत्व देती है। केवल काम्पीटिशन कई बार अवसाद पैदा करता है, कापरेशन और कम्पेशन का भाव जीवन में प्रसाद पैदा करता है। भगवद्गीता में कहा है प्रसादस्तु प्रसन्नता।
शिक्षण संस्थाओं और पारिवारिक सदस्यों का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि अक्सर देखा गया है कि हम बच्चों के साथ जब भी बैठते हैं तब शिक्षा की, पाठयक्रम की, बड़े-बड़े सपनों की, क्या बनना है, कैसे पैसे कमाने हैं, कहां घूमने जाना है, क्या खाना और क्या पहनना है, दूसरों के सामने कैसे व्यवहार करना है, अकादमिक परिणाम अच्छा आने पर, नौकरी लगने पर कैसे प्रसन्न्ता व्यक्त करना है, कैसे उत्सव मनाना है आदि अनेक विषयों पर बात करते हैं परन्तु क्या हम उन्हें इसलिये भी तैयार करते हैं कि जब वह फेल हो जाये, अपने लक्ष्य को पाने में असफल हो जाये या उन्होंने जो सोचा था वह लक्ष्य उन्हें प्राप्त न हो सके, तो क्याकरें? अपनी असफलताओं का सामना कैसे करें और क्या हम उन्हें बताते है कि जीवन में सफलतायें और अवसरवादिता ही सब कुछ नहीं है। सहिष्णुता, सरलता, सद्भाव भी जीवन के अंग है। उन्होंने कहा कि अकेलेपन को अपनेपन में बदलने के लिये मेडिटेशन इज द बेस्ट मेडिकेशन है। सबसे बढ़िया दवाई है कि ध्यान करें, प्रतिक्रिया नहीं ठीक से प्रत्युत्तर दें तथा प्रतिदिन आत्म्मंथन करें। फिर आत्महत्या नहीं आत्म चिंतन होगा। जीवन की दिशा ही बदल जायेगी।

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