ईकोफ्रेंडली तरीकों से मनाएं त्यौहार- स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ईकोफ्रेंडली तरीकों से मनाएं त्यौहार- स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश- परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने अनंत चतुर्दशी की पूर्व संध्या पर सभी देशवासियों का आह्वान करते हुये कहा कि हमारी नदियां और अन्य जलराशियां देश की जीवन रेखा है। जल, नहीं होगा तो कुछ भी सम्भव नहीं है। न हम होंगे न हमारी आने वाली पीढ़ियां होगीं, इसलिये हमारे द्वारा जो कुछ भी नदियों में प्रवाहित किया जाता है उस पर चितंन करने की आवश्यकता है कि हम जो प्रवाहित कर रहे हैं क्या वह ईकोफ्रेंडली है?

स्वामी चिदानंद ने कहा कि अगर हम गोबर, मिटटी और आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों से बनी भगवान श्री गणेश जी की प्रतिमाओं की स्थापना करते हैं तो उनका विसर्जन जल में किया जा सकता है परन्तु अगर प्रतिमायें थर्मोकोल या अन्य उत्पादों से बनी है तो हमें ऐसी प्रतिमाओं का विर्सजन जल में नहीं करना चाहिये, क्योंकि जिन परम्पराओं से पर्यावरण बिगड़ता हो उन परम्पराओं पर अब ध्यान देने की जरूरत है। हमारी श्रद्धा नदियों और जलराशियों का श्राद्ध न करें इसलिये ऐसी परम्पराओं को हमें बदलना होगा। इसलिये गणेश विसर्जन करें लेकिन नये सर्जन के साथ। उन्होंने बताया कि हम परमार्थ निकेतन में गणेश चतुर्थी के अवसर पर गोबर से बने श्री गणेश जी की स्थापना करते हैं तथा अनंत चतुर्दशी को वेदमंत्रों के साथ गणेश जी की मूर्ति को जमीन में गढ्ढा खोदकर स्थापित कर देते हैं, इससे जैविक खाद तैयार हो जाती है और यह पर्यावरण के अनुकूल भी है। पूजित मूर्तियों का सम्मान भी बरकरार रहें, हमें इसका भी ध्यान रखना होगा। वर्तमान समय में प्लास्टिक और प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों से बाजार लदे हुये हैं परन्तु इन उत्पादों से बनी प्रतिमाओं का कोई शास्त्रीय विधान नहीं है। शास्त्रीय विधान में तो गणेश जी की प्रतिमा को गोबर से बनाकर ही पूजन करना तत्पश्चात विधिपूर्वक उस प्रतिमा का विसर्जन करना चाहिये।

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