फोटोग्राफी ध्यान भटकाने के लिये नहीं बल्कि ध्यान लगाने के लिये-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

फोटोग्राफी ध्यान भटकाने के लिये नहीं बल्कि ध्यान लगाने के लिये-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश- परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने विश्व मानवतावादी दिवस के अवसर पर प्रकृति, पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के प्रति मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाने का संदेश देते हुये कहा कि अगर प्रकृति, मनुष्य के प्रति मानवीय नहीं होेती तो दुनिया का नजारा कुछ और होता। उन्होंने कहा कि हमें अपने प्राकृतिक संसाधन और विशेष तौर पर हमारी जल राशियां, प्राणवायु ऑक्सीजन देने वाले पेड़-पौधें, पोषण और संरक्षण देने वाली पृथ्वी के प्रति मानवीय आचरण करना ही होगा। अब तो ऐसा समय आ गया है कि जिस प्रकार बच्चे पैसों को अपने गुल्लक में सम्भाल कर रखते हैं वैसे ही जल को सम्भालना होगा अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब पानी हमसे दूर हो जायेगा। हम पानी बना तो नहीं सकते कम से कम बचा तो सकते है।

विश्व फोटोग्राफी दिवस के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि आज का दिन उन लोगों के लिये समर्पित है जिन्होंने खास और खूबसूरत दृश्यों को तस्वीरों में कैद कर उसे हमेशा के लिये यादगार बना दिया। उन्होंने युवाओं का आह्वान करते हुये कहा कि फोटोग्राफी अर्थात सुनहरी यादों में जीना इसलिये फोटोग्राफी करें परन्तु ध्यान भटकाने के लिये नहीं बल्कि ध्यान लगाने के लिये करें। फोटोग्राफी उत्साह, उमंग भरने वाली हो इसमें भारतीय संस्कृृति के दर्शन हो।
स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि विगत कुछ महीनों से पूरा विश्व एक अदृश्य वायरस के कारण अनेक समस्याओं का सामना कर रहा है। इस कोरोना वायरस के कारण अनेक लोगों को अपनी जान भी गवांनी पड़ी साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था भी लड़खड़ायी हुई है, ऐसे में हमने अनेक लोगों से सुना कि जान है तो जहान है परन्तु अब तो मुझे तो लगने लगा है जहान है तो जान है अर्थात प्रकृति है तो जीवन है, बिना प्रकृति और पर्यावरण के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। भारत तो प्राकृतिक संसाधनों एवं मानवीय गुणों से समृद्ध राष्ट्र है उसके इन गुणों को जीवंत बनायें रखना हम सभी का परम कर्तव्य है।
विश्व मानवतावादी दिवस के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि आज भारत सहित विश्व की एक बड़ी आबादी गरीबी में जीवन यापन कर रही है। हमारे पास विकास के कई मॉडल हैं, फिर भी हमारे देश की बड़ी आबादी अनेक अभावों के साथ जीवन जी रही है, इसलिये हमें विकास के ऐसे मॉडल की जरूरत है जो प्रकृति के अनुरूप हो। उन्होंने कहा कि अपने राष्ट्र को आत्मनिर्भर बनाने के लिये हमें विकास का एक ऐसा माॅडल चाहिये जो व्यक्ति एवं समाज की आवश्यकता को संतुलित करते हुए प्रत्येक मनुष्य को गरिमापूर्ण जीवन दे सके, सभी की पहुंच मौलिक सुविधाओं तक हो और इसके लिये हमें प्राकृतिक संसाधनों के संधारणीय उपभोग पर ध्यान देना होगा।

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