साहित्य, शिक्षा और समाज के लिए बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं कलम के सिपाही आचार्य रामकृष्ण पोखरियाल “सरस”

साहित्य, शिक्षा और समाज के लिए बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं कलम के सिपाही आचार्य रामकृष्ण पोखरियाल “सरस”
ऋषिकेश-रूकना नहीं कभी लिखते लिखते यूँ ही बीच में “सरस” की शान तुम हो यह परिचय बता दें।
उक्त पंक्तियांं चरितार्थ होती हैं कलम के उस निष्ठावान सिपाही पर जो साहित्यिक सांस्कृतिक और सामाजिक चेतना के पुंज को प्रज्वलित करने वाले प्रमुख प्रतिभाओं में ,साहित्य, शिक्षा, लोक संस्कृति, और समाज के लिए तिल-तिल समर्पित रहते हुए सरलता , सहजता, स्नेहता,सहयोगात्मक दृष्टिकोण ,के साथ साहित्य संस्कृत जैसे किलिष्ट विषयों मे व्याकरण की विद्वता के लिए तीर्थ नगरी ही नहीं अपितु सम्पूर्ण उत्तराखंंड मे अपना स्थान रखते है।
जी हां हम बात कर रहे हैं आवाज़ साहित्यक संस्था ही नहीं अपितु धर्म नगरी की अनेकों सामाजिक शैक्षिक , सांस्कृतिक संस्थाओं के उन्नयन के साथ परामर्शदात्री तथा भाषा की बेहतरीन परख रखने वाले उद्घोषक के रूप अपनी पहचान रखने वाले आचार्य रामकृष्ण पोखरियाल “सरस” की।
साहित्य शिक्षा और समाज के लिए सदैव कलम के सिपाही की भूमिका मे अपना योगदान देने वाले आचार्य पोखरियाल आवाज़ साहित्यिक संस्था के उपाध्यक्ष के साथ आवाज़ परिवार के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं । 1964 में साधारण परिवार मे जन्मे पोखरियाल बाल्यावस्था से ही साहित्य , संगीत व अध्ययन के प्रति अनुरागी रहे सृजन की विधा का उद्देश्य लेकर निरन्तर समाज व साहित्य की सेवा मे बढ़ते रहे ।प्रारम्भिक शिक्षा मे ही कविताओं को साँचे मे रखकर आकार देने लगे और उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन में रचित पंक्तियाँ-
“लाठियों और गोलियों से होंगे नहीं इरादे दफन, लक्ष्य हो यदि प्राप्त करना बांध लो सिर पर कफन ” प्रेरक कविता के रूप मे प्रचलित रही।
प्रायः राष्ट्रवादी विचारों और सामाजिक समस्याओं के प्रति लेखनी हमेशा चलती रही। समय -समय पर अपने प्रेरित लेखों को समाचार पत्रों ,पत्रिकाओं एवं विभिन्न साहित्यक संस्थाओं के संकलनों मे देने के कारण अनेक पुरस्कारों से सम्मान पाने वाले आर्चाय की प्रमुख समाचार पत्रो के अलावा कई राष्ट्रीय पत्र और पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित होती रहती हैं । उनकी प्रसिद्ध कविता संग्रह गांधी तेरे देश में काफी प्रेरक रही है ।लेखन के क्षेत्र मे आचार्य पोखरियाल ने ऋषिकेश के व्यक्तित्व नामक पुस्तक, मजदूरों की सुनो आवाज, ब्रह्म कमण्डल से तु निकली, काम कोंन करेगा, देवभूमि से पलायन,जैसे अनेक संकलनों के साथ आवाज़ संस्था के सामूहिक संकलनों मे अनेक रचनाएँ सृजित की हैं । एक कुशल उद्घोषक के रूप मे राष्ट्रीय स्तर तक के मंचों का संचालन के लिए अपनी छवि रखने वाले आचार्य पोखरियाल की वर्तमान संप्रति शिक्षक के रूप में विद्या निकेतन जूनियर हाई स्कूल कैलाश गेट है। अध्यापन की अपनी बेहतरीन आकर्षक शैली के कारण अनेक प्रशिक्षण केंद्रों एवं जिला स्काउटिंग के सन्दर्भदाता के रूप मे भी बने रहते हैं।हिन्दी संस्कृत विषयों के साथ अन्य विषयों पर भी अच्छी पकड़ रखने वाले पोखरियाल अनेक सामाजिक , शेक्षणिक पुरस्कारों से सम्मानित हैं ।संघ संगठन मे अपनी महत्वपूर्ण ख्याति रखते हुए तत्कालीन उत्तर प्रदेश मे उत्तराखंड के यूपीएससी मे 1997 से वर्ष 2002 तक निदेशक मनोनीत रहे ।स्वभाव मे सदैव पावनता, पवित्रता ,
सरलता ,सहजता, सिद्धान्तप्रियता की धाराओं का संगम रखने वाले आचार्य रामकृष्ण “सरस” जतो नाम ततो गुण की सूक्ति चरितार्थ करते है।