व्यवस्थाओं के अभाव में बदल रहा खदरी का इतिहास!

व्यवस्थाओं के अभाव में बदल रहा खदरी का इतिहास!
ऋषिकेष-ग्रामीण क्षेत्र ऋषिकेश की ग्राम सभा खदरी खड़क माफ के खादर क्षेत्र की उपजाऊ माटी का इतिहास लगभग सौ वर्ष से भी ज्यादा पुराना है
।खादर का अर्थ है प्राकृतिक रूप से सिंचित ऐसी भूमि जो नदी द्वारा बहाकर लायी गयी उपजाऊ मिट्टी का मैदान हो।जीवनदायिनी माँ गंगा के हिमालय से निकलने के बाद ऋषिकेश के समीप गंगा के तटीय भाग का यह पहला उपजाऊ मैदान है।यहाँ ग्रामीणों द्वारा बंगाले नाले पर कच्चा बांध बना कर खेती सौ वर्षों से भी अधिक समय से होती आरही है।लेकिन वन्यजीवों द्वारा फसल नुकसान और लागत मूल्य अधिक होने के कारण जहाँ किसान खेती से विमुख होने लगे उसका एक बड़ा कारण यह भी रहा है कि राज्य स्थापना के वर्षों बाद भी किसानों को उम्मीद राज्य की सरकारों से थी वह आजतक पूरी नहीं हुई।चाहे वह सौंग नदी के किनारे तटबन्ध का सवाल हो या फिर बँगाले नाले पर पका बांध बनाकर किसानों को दी जाने वाली सिँचाई की सुविधा का प्रश्न हो।आज भी राज्य स्थापना के 20 वर्षों बाद भी खादर के किसानों की स्थिति दिन ब दिन बिगड़ती जा रही है।कांग्रेस की सरकार में बाढ़ नियंत्रण एवं सिँचाई मंत्री रहे शूर वीर सिंह सजवाण ने अपने कार्यकाल में अवश्य एक बार पहल कर बंगाले नाले से गैस गोदाम तक तटबन्ध बनवाया था उसके बाद एक इंच भी पक्का सुरक्षा तटबन्ध नहीं बन पाया जबकि बाढ़ आने पर निरक्षण हर बार होता आया है।दूसरी ओर बंगाले नाले पर बांध बनाने के प्रयास तो कई बार किये गये लेकिन चैनल पक्का बांध आजतक नहीं बन पाया है।परिणामस्वरूप खादर के किसानों को पानी की दिक्कत का सामना हर साल करना पड़ता है।गौरतलब है कि खादर में सैंकड़ों हेक्टेयर कृषि भूमि पर काबिज़ अधिकतर किसान लघु एवं सीमान्त श्रेणी में आते हैं।व्यवस्थाओं के अभाव में सिंचाई की समस्या से जूझ रहे कृषक अब अपने दम पर समस्या के निवारण को खेतों में ट्यूबवेल लगाने को मजबूर हो रहे हैं।स्थानीय कृषक बृजमोहन सिंह रावत का कहना है कि परम्परागत धान-गेंहूँ की खेती में अब लागत भी नहीं निकलती है।इसलिए नकदी फसलें करने का फैसला लिया है लेकिन नकदी फसलों के लिए वर्ष भर पानी की आवश्यकता होती है जो नहर से पूरी न होने के कारण ट्यूबवेल लगाना पड़ रहा है।जिस पर डेढ़ से दो लाख रुपये खर्च आएगा इसके बाद बिजली का किराया अलग है।शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के प्रान्त पर्यावरण प्रमुख पर्यावरणविद विनोद जुगलान का कहना है कि एक ओर सरकार जल संरक्षण की बात कहती है और दूसरी ओर जलाभाव के कारण किसान बोरवेल लगाने को मजबूर हैं जबकि व्यवस्थाओं के अभाव में स्थानीय नालों का कई लाख लीटर पानी नदियों में यूँ ही बर्बाद जा रहा है।यदि जिम्मेदार अधिकारी इस ओर ध्यान देकर कारगर योजनाओं को क्रियान्वित करें तो सरकार की न केवल वाहवाही होगी बल्कि धरातल पर कार्ययोजनाओं के क्रियान्वयन से किसान भी खुशहाल होंगें।खादर में ट्यूबवेल लगने के साथ ही खादर में प्राकृतिक सिंचाई का वर्षो पुराना इतिहास बदल जायेगा।