प्रवासी मजदूरों की घर वापसी पर सियासत नहीं सहानुभूति होनी चाहिये – स्वामी चिदानन्द सरस्वती

प्रवासी मजदूरों की घर वापसी पर सियासत नहीं सहानुभूति होनी चाहिये – स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश- परमार्थ निकेतन में आज सोशल डिसटेंसिंग का गंभीरता से पालन करते हुये कोरोना काल में सड़क हादसों में जान गंवाने वाले प्रवासी मजदूर भाई-बहनों की आत्मा की शान्ति के लिये विशेष प्रार्थना का आयोजन किया गया।
स्वामी चिदानंद ने केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों से निवेदन किया कि जो लोग अपने घरों में है वे इस समय सुरक्षित हैं, परन्तु जो लोग सड़कों पर भटक रहे हैं, जो प्रवासी मजदूर अपने घर वापसी के लिये सैकड़ों किलोमीटर, छोटे-छोटे बच्चों के साथ यात्रा कर रहे हैं, उनकी व्यथा और वेदना असहनीय है। हर व्यक्ति मुसीबत के समय अपने परिवार के पास जाना चाहता है, यही चाहत उन मजदूरों की भी है। उनके पास अभी रोजगार नहीं है, बेरोजगारी और बेबसी से परेशान प्रवासी मजदूर घर पहुंचने की जिददोजहद में अपनी जान गंवा रहे हैं, यह अत्यंत हृदयविदारक है। प्रवासी मजदूरों की घर वापसी पर सियासत नहीं बल्कि सहानुभूति होनी चाहिये। पिछले कुछ दिनों से प्रवासी मजदूर सड़क हादसों के शिकार हो रहे हैं, आज तड़के यूपी के औरेया में हुये सड़क हदसे में 24 मजदूरों ने अपनी जान गंवा दी। हाइवे पैदल चल रहे मजदूरों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ना पड़ रहा है।स्वामी चिदानंद ने कहा कि प्रथम और दूसरे चरण के लाॅकडाउन के समय में प्रवासी मजदूरों ने अपने संयम का परिचय दिया, जो जहां पर थे वहीं रूके रहे परन्तु अब लगता है कोरोना वायरस का बढ़ता संकट उनके संयम पर हावी हो रहा है, इसलिये सबसे पहले हमारे मजदूर भाई-बहनों की समस्याओं पर ध्यान देने की जरूरत है। भारत को सक्षम और आत्मनिर्भर बनाने वाले हमारे मजदूर आज बेबस दिखाई दे रहे हैं। मजदूरों के दर्द को पहचानना होगा। भारत की असली चमक मजदूरों के पसीन से ही है। भारत को चमकाने में मजदूरों का अहम योगदान है, अतः मजदूरों की बेसब्री और खोते संयम पर विशेष ध्यान देना होगा। भारत का मजदूर वर्ग भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, इस बात को स्वीकार करना होगा और उनके अस्तित्व को बचाने के लिये सर्वसम्भव प्रयास करने होंगे।

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