जड़ो से जुड़ा परिवार समाज के लिए दिव्य वरदान-चिदानंद मुनि

जड़ो से जुड़ा परिवार समाज के लिए दिव्य वरदान-चिदानंद मुनि
ऋषिकेश- परमार्थ परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि संस्कार है, परिवार की आधारशिला। संस्कार है तो परिवार है, संस्कारों के बिना परिवार की कल्पना नहीं की जा सकती। संस्कारों के बिना परिवार वैसे ही है जैसे बिन पानी के नदी; बिना पैसे के बैंक, बिना सुगंध के फूल। जीवन और परिवार में संस्कार न हो तो वह परिवार न तो प्रसन्न रह सकता है, न ही संगठित रह सकता है। परिवार की आधारशिला और नींव संस्कार ही है इसलिये अपनी संस्कृति और संस्कारों को बचायें।
स्वामी चिदानंद ने विश्व परिवार दिवस पर कहा कि संस्कार ही है जीवन का आधार और नींव यदि नींव मजबूत नहीं है तो इमारत कितनी भी बड़ी हो एक दिन ढ़ह जाती है। पेड़ कितना भी सुन्दर क्यो न हो; उसके पत्ते कितने भी सुन्दर क्यो न हों किन्तु उसके जड़ में दीमक लग जाये, जड़ मजबूत न हो या जड़ ही कट जाये तो पेड़ कितने दिन हरा भरा रह सकता है। पेड़ की हरियाली जड़ों से उसी प्रकार परिवार की हरियाली अपनी जड़ों से जुड़ने से है; अपने संस्कारों से जुड़ने से है। हरियाली और खुशहाली को बनाये रखने के लिये आईये अपने मूल से जुडें और अपने मूल्यों से जुड़ें।स्वामी चिदानंद ने कहा कि आज विश्व परिवार दिवस है परन्तु मुझे लगता है संस्कारों हेतु अन्तर्राष्ट्रीय संस्कार भी दिवस होना चाहिये इससे परिवार भी बचेगे; संस्कार भी बचेगे,संस्कृति भी बचेगी और संतति भी बचेगी।उन्होंने कहा कि परिवार के द्वारा दिये संस्कारों से ही दुनिया में गांधी जी या हिटलर जैसे व्यक्तित्व का जन्म होता है। परिवार के संस्कारों ने ही गांधी जी को अपार जनसमर्थन मिलने के बाद भी सत्य और अहिंसा के मार्ग का चुनाव करना सिखाया और दूसरी ओर परिवार के संस्कार ने ही हिटलर को तानाशाह और जनसंहारक बना दिया। परिवार के संस्कारों से ही किसी भी व्यक्ति के अन्दर धैर्य, साहस, संयम जैसे गुणों का विकास होता है, इसलिये तो कहा जाता है परिवार, व्यक्ति की प्रथम पाठशाला है। परिवार से प्राप्त संस्कारों के माध्यम से ही सामाजिक जीवन का निर्माण होता है। सामाजिक जीवन में हर व्यक्ति सुकून से रहना चाहता है परन्तु क्या आज के समय में हमारे समाज, परिवेश और वातावरण में लोग सुकून भरी जिन्दगी जी रहे हैं, यह मंथन का विषय है। एक विचारक कहते है कि ’’परिवार, समाज की आधारभूत इकाई है, एक संस्कारवान परिवार समाज के लिये वरदान है और संस्कारविहीन परिवार समाज के लिये अभिशाप है।
स्वामी चिदानंद ने कहा कि आधुनिक समय में आधुनिकता, उपभोक्तावाद और नगरीय संस्कृति के कारण संयुक्त परिवार परम्परा लगभग समाप्त हो रही है तथा न्यूक्लियर परिवार परम्परा शुरू हो गयी है, जिससे नई पीढ़ी अपने मूल से अलग होती जा रही है। वैसे परिवारों का स्वरूप कैसा भी हो परन्तु उसके मूल में संस्कार हैं, अगर वह परिवार अपनी जड़ों से जुड़ा है तो वह वास्तव में समाज के लिये एक दिव्य वरदान है। आईये संकल्प ले कि अपने परिवार को संस्कारों से पोषित करेंगे तथा संस्कारों से युक्त पीढ़ियों का निर्माण करेंगे। कोरोना काल इसके लिये स्वर्णिम अवसर है उसका उपयोग करें।