हिमालयी पक्षियों ने बनाया ऋषिकेश में रैनबसेरा

हिमालयी पक्षियों ने बनाया ऋषिकेश में रैनबसेरा
लॉक डाउन से मिले पर्यावरण संरक्षण के संकेत
ऋषिकेश-कोविड 19 कोरोना वायरस के कारण जहाँ पूरे विश्व पर संक्रमण का खतरा मंडरा रहा है और लोग अपने घरों में कैद रहने को मजबूर हैं वहीं दूसरी ओर प्रकृति प्रेमियों और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े लोगों के लिए ऋषिकेश से एक अच्छी खबर है।राजकीय पॉलिटेक्निक गढ़ी श्यामपुर के नाम से खदरी खड़क माफ की सीमा पर स्थित इस संस्थान में आजकल एक विशेष प्रजाति की चिड़िया ने लाखों की तादाद में अपना आशियाना बना लिया है।और घोंसले भी कोई तिनके से नहीं बल्कि ये गीली मिट्टी से बनाये गए हैं जिनमें घोंसला बनाने के लिए सौ दो सौ ग्राम मिट्टी नहीं बल्कि कुन्तलों मिट्टी का प्रयोग किया गया है।संस्थान के पर्यावरण संरक्षक पर्यावरणविद विनोद जुगलान विप्र का कहना है कि आप यकीन करें न करें पर खबर आश्चर्यजनक है कि नन्ही सी चिड़ियों द्वारा जहाँ मिट्टी के घोंसले बनाये गए हैं वहाँ नीचे कुन्तलों मिट्टी एकत्र हो गयी है यह वही मिट्टी है जो चिड़ियों की चोंच से घोंसले बनाते हुए गिर जाती है।मिट्टी का घोंसला बनाने वाली इस चिड़िया को हिरंडीनिडे या मार्टिस और निगल के नाम से जाना जाता है जबकि पहाड़ी क्षेत्रीय बोली में गोत्याली या मटियाली के नाम से पुकारा जाता है।पर्यावरण मामलों के जानकार एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के प्रान्त पर्यावरण प्रमुख विनोद जुगलान बताते हैं कि इस चिड़िया की खास बात यह है कि यह गर्मियों का मौसम प्रारम्भ होते ही पर्वतीय क्षेत्रों की ओर प्रवास को कूच कर जाती है।इससे इस बात का अनुमान लगाया जाता है कि गर्मियों का मौसम शुरू हो चुका है।इस चिड़िया को गढ़वाल मंडल के पौड़ी जनपद और कुमाऊँ मण्डल के चम्पावत क्षेत्र में बहुतायत देखा जाता है।पहाड़ी पर्यटक आवासों और होटलों में बने इसके प्राकृतिक घोंसलों को लोग सुख समृद्धि का प्रतीक भी मानते हैं।ऋषिकेश क्षेत्र में गोत्याली (मटियाली) चिड़िया के प्रवास से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस बार गर्मी का मौसम इन पहाड़ी चिड़ियाओं के लिए अनुकूल रहने वाला है।लॉक डाउन के कारण यातायात बन्द होने व मैदानी भागों में रुक-रुक कर होरही बेमौसम की बर्षात से मौसम वन्यजीवों एवं पशु-पक्षियों के लिए माकूल नजर रहा है।दुनियाँ भर में पाए जाने वाली यह चिड़िया सिर्फ भारत में ही नहीं अमेरिका सहित कई यूरोपीय देशों में प्रवास करती है जबकि दक्षिणी सूडान इसका स्थायी क्षेत्र है जहाँ इसे निगल के नाम से जाना जाता है।उत्तराखंड में गोत्याली या मटियाली पहाड़ी क्षेत्र की प्रवासी चिड़िया कालेभूरे रंग की होती है जो उड़कर कीट पतंगों का शिकार करती है।सर्दियों के अंत में प्रजनन काल के बाद फरवरी से मार्च यह अंडे देती हैं।यह सिर्फ कीट पतंगों का भोजन करती है और जिस घर या परिसर में इसका वास होता है वहाँ कोई कीट नहीं पनपते हैं।लोक भाषाओं में ऐसी मान्यता है कि किसी के दिये अन्न ग्रहण न करने के कारण मटियाली गोत्याली चिड़िया को चिड़ियों की पण्डित का दर्जा दिया जाता है।ऋषिकेश के मैदानी क्षेत्रों में इस चिड़िया के प्रवास की जो खबर मिल रही है जो न केवल देखने सुनने में पर्यावरण प्रेमियों के लिए अच्छी खबर है बल्कि वन्यजीव संस्थान के विद्यार्थियों के लिए के शोध का विषय भी हो सकती है।