विश्व पुस्तक दिवस पर ऑनलाइन परिचर्चा
ये समय किताबों से दोस्ती का समय
ऋषिकेश-विश्व पुस्तक दिवस पर आज जनकवि डॉ अतुल शर्मा द्वारा ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया। विभिन्न स्थानों से रचनाकारों ने विश्व पुस्तक दिवस पर अपने विचार रखे।
आज जब पूरी दुनिया घरों मे बन्द है तो उनका साथ किताबें दे रही हैं। अपनी खरीदी गई किताबों को देखने और पलटने का यह एक बेहतर समय भी हो सकता है। तमाम साहित्य व संस्कृति कर्मी लॉक डाउन का सदुपयोग अपनी किताबों के साथ कर रहे हैं।डॉअतुल शर्मा ने कहा कि यह समय किताबों से दोस्ती बढाने का भी समय है।साहित्य प्रेमी व आकाशवाणी देहरादून से जुड़े दीपेन्द सिंवाच ने कहा कि उनका अपना निजी पुस्तकालय है जिसके प्रति उनका बेहद मोह है ।वे आजकल ओमा शर्मा और शम्भुनाथ जी की किताब पढ रहे हैं ।वहीं खाड़ी टिहरी गढ़वाल से कवि व समाजसेवी अरन्य रन्जन ने बताया कि पुस्तकों का कोई ठोस विकल्प नही है।डिजिटल युग मे किताबों पर गहन चर्चा जरुरी है। नैनीताल से प्रसिद्ध कवि व रंगकर्मी जहूर आलम कह रहे हैं कि कोरोना के इस दौर में किताबें उनका साथ दे रही हैं, पर खरीद कर पढने की आदत बहुत कम हुई हैं ।इस परिचर्चा में पुस्तकालय विभाग से सेवानिवृत्त रंजना शर्मा ने कहा कि देहरादून में कोई केन्द्रीय पुस्तकालय नहीं है ,जो होना चाहिये। इलाहाबाद से जाने- माने कवि व गीतकार यश मालवीय ने कहा कि जब भी अनिर्णय की स्थिति आती है तो मै गा़लिब का दिवान और तुलसी की रामचरितमानस पढता हूं। किताबों के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। ऋषिकेश के कवि और प्रकाशन से जुड़े प्रबोध उनियाल कहते हैं कि जब आप चुप हो जाते हैं तो किताबें बोलती हैं ,तब आलमारी में रखीं पुस्तकें मुझे मेरे होने का एहसास कराती हैं। देहरादून से वरिष्ठ शायर प्रेम साहिल ने विचार रखे कि पुस्तकों के पढ़ने के संस्कार नहीं बन पा रहे हैं।लोग अपने माता- पिता से भी यह बात नही सीख पा रहे हैं ।लोग किताबें खरीद कर नहीं पढ़ते। ऋषिकेश के कवि पंकज त्यागी ने कहा कि किताबों से गुजरना जीवन से गुजरना है। मनुष्य और मनुष्यता की जड़ें तलाश करना है ।मनुष्यता के खिलाफ षड्यंत्र का पर्दाफाश करने का दस्तावेज भी हैं। कवि धनेश कोठारी ने कहा कि भले ही कितना डिजिटल युग हो जाए लेकिन किताबों को किताबों जैसा ही पढ़ना हमारे स्वभाव में होना चाहिए।वहीं कहानीकार रेखा शर्मा ने महत्वपूर्ण बात कही कि वे अपने और लोगो की संवेदनाओं का दर्पण पुस्तकों मे देखती हैं।घरों मे बन्द लोगो की साथी बनी किताबें विश्व पुस्तक- दिवस रोज मना रही हैं। घरों में सब बंद है लेकिन किताबें खुल गयीं।
ये ऑनलाइन परिचर्चा कई महत्वपूर्ण बातें सामने ले आई। आशा है ये सब बातें विश्व पुस्तक दिवस की सार्थकता के साथ आगे बढ़ेंगी।