कोरोना के खौफ से ‘अर्थियों ” को कंधे भी नही हो पा रहे नसीब

कोरोना का खौफ और प्रशासन की बंदिशों ने बदली विरासत
ऋषिकेश- वैश्विक महामारी बन चुकी कोरोना के चलते लोग चाहकर भी अपने पड़ोसी का साथ नही दे पा रहे हैं।इसके लिए प्रशासनिक बंदिशे और कोरोना का खौफ बराबर की जिम्मेदार हैं।
देवभूमि ऋषिकेश में जहां एक और सांझा संस्कृति की विरासत रही है वहीं सुख दुख और संकट के समय मजबूती के साथ मिलने, जुलने वाले यार दोस्त और पड़ोसियों द्वारा मजबूती के साथ सहारा देने की परम्परा रही है।लेकिन कोरोना संकटकाल में यह बुरी तरह से कमजोर पड़ती नजर आई है।आलम तो यह है कोरोना के खौफ की वजह से पड़ोसी भी अर्थी को कंधा देने से पल्ला झाड़ने लगे हैं।
कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देख अंतिम निवास तक ले जाने के लिए अपनों और पड़ोसियों का साथ भी नहीं मिल रहा है। देश में लॉकडाउन के बाद लोग सामान्य मौत पर भी कंधा देने में परहेज कर रहे हैं।


लॉकडाउन में ऋषिकेश के चन्द्रेश्वर नगर स्थित मुक्ति धाम में भी पूरी तरह से सन्नाटे के आगोश में डूबा हुआ हुआ नजर आ रहा है।यहां होने वाली अंत्येष्टि में सम्मिलित होने वालों में पिछले एक पखवाड़े से अधिकांशतः परिवार के सदस्य ही रहे हैं। कोरोना वायरस के कारण पिछले प्रंदह से लागू हुए लॉक डाउन से जहां लोगों की जिंदगी की रफ्तार घर पर ही थमकर रह गई है वहीं इस नश्वर शरीर को त्याग देने वालों के परिजनों लिए तो मुसीबतों की दोहरी मार एक साथ पड़ गई है।एक तो श्मशान ले जाने के उन्हें कंधें नसीब नही हुए ।साथ ही दुख की इस घड़ी में सोशल डिस्टेसिंग की वजह से लोग संवेदना जताने भी घर पर नही आ पा रहे।गौरतलब है कि ऋषिकेश में रोजाना लगभग तीन मृतकों को प्रतिदिन दाह संस्कार के लिए मुक्ति धाम लाया जाता है।इसमें नगर से सटे ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों द्वारा भी परिवार में किसी के निधन के बाद ट्रेक्टर ट्रालियों में बिठाकर रिश्ते नातेदार एवं तमाम पड़ोसियों को लाया जाता था।हांलाकि कोरोना के खौफ ने अब तस्वीर पूरी तरह से बदल दी है।पिछले एक पखवाड़े में मुक्ति धाम में शव दाह संस्कार के दौरान अधिकाशतः परिवार के सदस्य ही शामिल होते दिखाई दिए हैं।इसके लिए कोरोना का खौफ और प्रशासन की बंदिशें दोनों को ही बड़ी वजह बताया जा रहा है।इन सबके बीच वैश्विक महामारी की वजह से घरों में सिमट कर इंसान कितना बेबस और अकेला रह जायेगा इसकी परिकल्पना तो कभी भी किसी ने न की थी।लेकिन जमीनी धरातल पर कड़वी सच्चाई यही है कोरोना वायरस के खतरे में सोशल डिस्टेसिंग के चलते सबसे बड़े सांसारिक दुख में भी पल्ला झाड़करअपने भी बेगाने बनते हुए नजर आ रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
%d bloggers like this: