सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर रहे वन गुजर,कोरोना संदिग्ध होने की है आशंका

दो दिन पूर्व गंगा भोगपुर में पकड़ा जा चुका है एक संदिग्ध

ऋषिकेश-पूरे देश मे कोरोना के प्रति जहां न केवल जनजागरूकता अभियान जोरों पर है वहीं दूसरी ओर समाज और प्रसाशन को कुछ लोगों की बेवकूफी के कारण न केवल खासी मशक्कत करनी पड़ रही है,बल्कि परेशानियों का सामना भी करना पड़ रहा है।ऐसा ही धर्म विशेष से जुड़ा एक व्यक्ति संदिग्ध परिस्थितियों में दो दिन पूर्व गंगा भोगपुर कौड़िया तल्ला के निकट पकड़ा गया था।जिसके स्वास्थ्य की जांचकर उसे कोरोनटाईन किया गया है।स्थानी ग्रामीणों का मानना है कि यह संदिग्ध वन गूजरों के डेरों की ओर से आया होगा,वर्ना अकेले किसी का रिजर्व फारेस्ट में रात बिताना कठिन है।दूसरी ओर ऋषिकेश ग्रामीण क्षेत्र के पशुलोक विस्तापित में सीवरेज ट्रीटमेन्ट प्लान्ट से कुछ दूरी पर वन गूजरों के डेरों की संख्या बढ़ जाने से ग्रामीण चिन्ता में हैं।हैरानी की बात है कि जब वन गूजरों को राज्य सरकार द्वारा बैराज कुनाऊ से हरिद्वार के पास गेंड़ीखाता में भू-आबंटित कर विस्तापित कर दिया गया है तो यह जगह-जगह घूम कर लॉक डाउन क्यों तोड़ रहे हैं।सोचने की बात यह है कि जब पूरे राज्य में लॉक डाउन की स्थिति है तो ऐसे में यह अपने डेरे कैसे बदल रहे हैं? ग्रामीणों का कहना है कि श्यामपुर विस्तापित क्षेत्र लक्कड़ घाट के समीप इनके डेरों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।एक वन गुजर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जिस क्षेत्र में यह निवास कर रहे हैं वह विस्तापित क्षेत्र है हम उसका किराया दे रहे हैं जो कि ऋषिकेश क्षेत्र में आता है लेकिन पशुओं को चराने के लिए हम नजदीकी पौड़ी गढ़वाल की वन बीट में लेकर जाते हैं,बीच मे गंगा जी होने के कारण वहाँ के वन कर्मी इधर नहीं आते हैं।इस तरह ये कबीलाई दो जनपदों की सीमाओं का लाभ लेकर प्रशासन की नजर से छुपे हुए हैं।साथ ही स्थानीय लोगों का कहना है कि जो गुजर जँगल में जँगल में पशु चरा रहे हैं वे सोशियल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर रहे हैं।पानी के जिन प्राकृतिक स्रोतों का यह प्रयोग कर रहे हैं उन जलस्रोतों का प्रयोग पितृकर्म के लिए जाने वाले स्थानीय ग्रामीण भी करते हैं।ऐसे में यदि कोई वन गुजर कोरोना पोजेटिव हुआ तो ग्रामीण क्षेत्र में संक्रमण बड़ी तेजी के साथ फैल सकता है।


नमामि गंगे जिला क्रियान्वयन समिति के सदस्य पर्यावरणविद विनोद जुगलान विप्र का कहना है कि प्रसाशन को लक्कड़ घाट के समीप विस्थापित क्षेत्र में अचानक आए इन वन गूजरों की पड़ताल करनी चाहिए।इनसे न केवल संक्रमण का खतरा है बल्कि इनके आने से अचानक बढ़ गयी पशुओं की संख्या से रिजर्व फारेस्ट की वन भूमि पर प्राकृतिक रूप से उग रही नई वन पौध और पेड़ पौधों को भी नुकसान हो रहा है,साथ ही इनके द्वारा डेरों की शिफ्टिंग के लिए उपयोग में लाये जाने वाले घोड़े-खच्चर रात्रि के समय सुरक्षा बाड़ तोड़कर किसानों की फसल रौंद रहे हैं।समय रहते इन पर पुलिस प्रसाशन सहित वनविभाग को गम्भीरता से विचार करने की जरूरत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
%d bloggers like this: